“गुस्सा”

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जनून कुछ कर दिखाने की
ठानी खुद को आज़माने की
खोजनी हैं खुद की कमियां
कोशिश से उन्हें मिटाने की
    छोटी छोटी बातों को लेकर भी
    मुझे क्यूं जल्दी गुस्सा आता है
    बिना सोचे समझे कर के गुस्सा
    बना बनाया खेल बिगड़ जाता है
करूं गल्त शब्दों का इस्तेमाल
बाद में पछ्ता के रह जाता हूं
दुनिया क्या कहेगी की छोड़ो
खुद की नज़र से गिर जाता हूं
    कार्य कितना चाहे कठिन लगे
    हर कार्य आसान बन जाता है
    मन में अटल  विश्वास हो अगर
    चट्टानों से राह निकल आता है
विश्वास है मुझे मैं कर पाउंगा
मन को शान्त करने के लिए
अपने धीरज को अपनाउंगा
गुस्से पे विजय मैं पा जाउंगा
बृज किशोर भाटिया,चंडीगढ़ 

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