“काम वाली बाई”

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मियां बीवी दोनों का घर से नौकरी पर चले जाना,
निष्चित है काम वाली बाई का घर पर चले आना।
ग्रहणी का हाथ बंटाने पहले ननद सास थीं रहती,
अब तो खाली पति हैं घर में काम जिसे वो कहती।
 नौकरी पर ना जाती तो वो सारा काम खुद कर पाती,
 खाना बनाके,बर्तन सफाई करे तो रोज़ लेट हो जाती।
 शुक्र है काम वाली बाई सुबह खाना बर्तन कर जाती,
  घर का झाड़ू पोंछा उससे शाम को रोज़ करवाती।
पत्नी को छुट्टी 4 बजे हो जाए वो शाम तक घर आ जाती,
पति बेचारा जल्दी जाता घर लौटने में देर उसे हो जाती।
काम वाली के रोज़ आ जाने पर घर में रोटी तो बन पाती,
काम वाली बाई जब छुट्टी करती रोटी बाजार से आती।
पत्नी बीमार है तो चल जायेगा, बाई बीमार ना हो जाये,
अगर बीमार हो गयी बाई, समझो मुसीबत पति पर आए।
पति नाश्ता और बर्तन की करे सफाई तब आफिस जाए,
दफ्तर से थका लौटे बीवी का फिर काम में हाथ बंटाए।
बीवी बीमार हो जाए तो पति उसे डाक्टर पर ले जाये,
काम वाली बीमार पड़े तो पति घर का रामू कहलाये।
मंदिर में पत्नी के ठीक होने की जो दुआ ना कर पाए,
बाई के काम पर लौटने की मंदिर मन्नत मांगने जाए।
बृज किशोर भाटिया,चंडीगढ़

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