चंडीगढ़

1 मार्च 2018

दिव्या आज़ाद

प्रेस क्लब में पंजाब यूनिवर्सिटी की दयानंद चेयर को समाप्त करने को लेकर आर्य समाज के प्रतिनिधियों ने पीयू के खिलाफ प्रेस कांफ्रेंस में चेयर को समाप्त करने का विरोध किया और संघर्ष की चेतावनी दी है। पंजाब के करतारपुर स्थित गुरु विरजानंद गुरुकुल महाविद्यालय,  के प्रिंसिपल डॉ. उदयन आर्य ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि ‘पंजाब युनिवर्सिटी ने 1975 में स्थापित हुई दयानंद चेयर फॉर वेदिक स्टडीज को संस्कृत विभाग में मर्ज करने का निर्णय लिया है। इससे दयानंद सरस्वती और वेदों पर होने वाला रिसर्च रुक जाएगा। पंजाब युनिवर्सिटी ने इसी तरह कालिदास चेयर को भी संस्कृत विभाग में मर्ज कर दिया था और तब से कवि कालिदास पर रिसर्च रुक गया है। जबकि यूनिवर्सिटी में उर्दू, तिब्बतन और चाईनीज विभाग भी हैं जिनमें नाम मात्र रिसर्च हो रहा है। जहां तक दयानंद चेयर की बात है तो 4 मार्च को दयानंद चेयर से पीएचडी करने वाले चार छात्रों को कॉनवोकेशन में पीएचडी की उपाधि दी जानी है। इस चेयर का महत्व इसी बात से पता चल सकता है कि उन चार छात्रों में एक संस्कृत महाविद्यालय के प्रिंसिपल हैं, दो जम्मू यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर हैं और एक अन्य कालेज में प्रोफेसर हैं। इस चेयर से पीएचडी करने वाले डॉ. सुरिंदर कुमार गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के कुलपति हैं। सीट से 75 छात्रों ने पीएचडी की है और सभी आज देश में प्रतिष्ठित संस्थानों में पदासीन हैं। सेक्टर 10 स्थित डीएवी कालेज के पूर्व प्रिसिपल केसी आर्य ने बताया कि चेयर को समाप्त करने से वेदिक रिसर्च पर बड़ा प्रभाव पड़ेगा। यूनिवर्सिटीज कोई करियाने की दुकान नहीं हैं कि जहां लाभ और हानि देखी जाती हो। दयानंद चेयर को बचाने के लिए पीयू चाहे तो कुछ डिप्लोमा या सर्टिफिकेट कोर्स शुरू कर सकती है जिससे उन्हें फीस के रूप में आय शुरू हो जाएगी। मात्र कुछ लाख रुपओं के लिए एक प्रतिष्ठित चेयर को खत्म करना नासमझी है। अगर पीयू ने अपना यह निर्णय नहीं बदला तो आर्य समाज संघर्ष तेज कर देगा। इस तरह चेयर को समाप्त करना ही तो शिक्षा का व्यापारीकरण है। ऐसा करना पीयू जैसे संस्थान को शोभा नहीं देता । ध्यातव्य है कि यू.जी.सी द्वारा  सभी विश्वविद्यालयों में निर्देश दिया गया है कि स्वामी दयानन्द चेयर स्थापित किये जाए और  कहाँ पंजाब यूनिवर्सिटीज  इसको बन्द कर रही है । ये तो सीधे नियमों के खिलाफहै ।

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