“ए जिँदगी”

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ए जिंदगी मुझे तूं किस मुकाम पे लाई,
लडाई भी खुद से, खुद से ही रुसवाई।
              ऊपरवाला देख के भी कुछ ना बोले,
              मेरी परिक्षा ले रहा,  तराजू  मे तोले,
              सब कुछ दिया उसने फिर क्यूं तन्हाई।
 किसी से शिकवा ना  शिकायत करूं,
 अपनी ही नाकामियों से मैं खुद ड़र्रूं,
 चुप रहना ही बेहतर कयूँ  दूं मैं दुहाई।
               दूसरों की खुशियों को मान के अपना,
               दर्दे दिल को बना के हथियार अपना,
               रोक लिए आँसूं पर आंखे नां छ्ल्कांई।
ए जिन्दगी मुझे तूं किस मुकाम पे लाई,
लडाई भी खुद से, खुद से ही रुसवाई।
बृज किशोर भाटिया,चंडीगढ़

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