एक बार फ़िर से हम वापस आ गए हैं कुछ नए किस्से लेकर। आज का किस्सा आंखों देखा है। कहीं देर ना हो जाए कहीं गिफ़्ट ख़त्म ना हो जाए। जी गिफ़्ट इतना ज़्यादा जरूरी है कि कई ‘सो-कॉल्ड’ पत्रकार और कई असली पत्रकार गिफ़्ट का पता चलते ही इस तरह से पीआर की तरफ दौड़ते हैं जैसे मैराथन जीतना हो।

अब इस किस्से में हुआ कुछ यूं कि एक मीडिया इवेंट चल रहा था। पीआर बहुत बिजी था कि उसको इतना वक़्त भी नहीं मिला कि वो सबसे मिल सके। सभी बैठकर आराम से खा रहे थे। लेकिन अचानक ही भगदड़ मच गई। अब वो कैसे हुआ? वो ऐसे हुआ कि जैसे ही पीआर फ्री हुआ और कुछ मीडिया वालों को एक साथ देखकर गिफ़्ट बांटने के लिए आया कुछ पत्रकार खाना-पीना सब छोड़कर उसकी तरफ़ इस तरह से भागे जैसे रेस लगी हो।

टेंशन की बात थी भाई। पीआर के हाथ में थोड़े ही गिफ़्ट थे। भागते ना तो गिफ़्ट ख़त्म ना हो जाता? अब जब वो आए ही सिर्फ़ गिफ़्ट के लिए हैं तो खाना खाकर क्या करेंगे। और अगर गिफ़्ट ख़त्म हो गए तो उनका घर कैसे चलेगा, बताओ?

खाना तो कहीं भी खा लेंगे ना लेकिन गिफ़्ट के बिना आगे ज़िंदगी गुज़ारनी बहुत मुश्किल हो जाती ना। चलो अब भागकर गिफ़्ट ले लिया, बचा ली ज़िंदगी अपनी। अब क्या? बस चलो भागो घर। अब इवेंट में 1 मिनट रूकना भी पाप है। ख़बर करने थोड़ी ना आए थे। ख़बर का क्या है पीआर भेज देगा। लेकिन गिफ़्ट थोड़ी ना भेजेगा। जो काम करने आए थे हो गया अब चलते हैं।

जी हां, बिलकुल ऐसा ही नज़ारा था। भागकर गिफ़्ट लिया और 15 सेकंड में इवेंट से रफूचक्कर। गिफ़्ट लेते ही पत्रकारों का पूरा एक ग्रुप ऐसे निकला इवेंट से जैसे शादी ख़त्म होते ही रिश्तेदार गायब हो जाते हैं।

गिफ़्ट लेना गलत नहीं है। लेकिन लालच दिखाना तो बहुत ज़्यादा गलत है। मुझे भी किसी ने कहा कि तू जाकर भी ले ले गिफ़्ट कहीं ख़त्म ना हो जाए। मैंने सीधा जवाब दिया कि मैं गिफ़्ट के लालच में आई भी नहीं हूं। नहीं भी मिला तो मैं मर नहीं जाऊंगी।

ये गिफ़्ट कल्चर पत्रकारों को उनके काम के बदले सम्मान के तौर पर शुरू किया गया था। लेकिन आज के टाइम में ख़बर की वैल्यू ही गिफ्ट देखकर लगाई जाती है। गिफ़्ट है तो जाएंगे नहीं तो नहीं और अगर गिफ़्ट ख़त्म हो गया, मिला नहीं तो ख़बर भी नहीं लगाएंगे। पता नहीं किसने ये रूल्स बना दिए हैं।

करते कुछ लोग हैं बदनाम सभी पत्रकारों को होना पड़ता है।

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