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चंडीगढ़
23 अगस्त 2019
दिव्या आज़ाद
आज प्रत्येक व्यक्ति स्वार्थ पूर्ण होता जा रहा है। वह किसी ना किसी मतलब के कारण ही दूसरे से जुड़ा हुआ है। कमल का फूल चढ़ाने से परमात्मा दौड़े आते हैं। कमल वह तत्व है जो कीचड़ में तो जरूर है परंतु उसमें लिप्त नहीं होता। संसार में रहते हुए हमें कामनाओं से लिप्त नहीं होना चाहिए। उपरोक्त शब्द प्रवचन के दौरान परम पूज्य संत श्री रमेश भाई शुक्ल जी ने शिव शक्ति मंदिर सेक्टर 30 बी में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा महापुराण के दौरान कहे।
उन्होंने कहा कि यदि मन विषय वासनाओं से मुक्त है तो हम स्वयं को परमात्मा को समर्पित कर सकते हैं तभी ईश्वर की प्राप्ति संभव हो सकती है। हमें संसार में आसक्त नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि श्रद्धा और विश्वास की जरूरत है। यदि परमात्मा को खिलाओगे तो वह अवश्य खाएगा। उन्होंने कहा कि जब दुर्वासा ऋषि के अभिशाप से देवता कमजोर पड़ गए और स्वर्ग पर दैत्यों का अधिपत्य स्थापित हो गया तो ऐसे में देवता भगवान के पास गए। भगवान ने कहा कि अमृत पीकर ही अमर हुआ जा सकता है और यह कार्य अकेले संभव नहीं है। इसके लिए दैत्यों और देवताओं को मिलकर समुद्र मंथन से अमृत निकालने के लिए संयुक्त प्रयास करना होगा। दैत्यों और देवताओं ने मिलकर समुद्र मंथन किया और उसमें से अमृत कलश निकाला।
मंथन के दौरान सर्वप्रथम विष और रत्न निकले इसके आगे बढ़कर अमृत कलश की प्राप्ति हुई। उन्होंने कहा कि भगवान का भजन ही अमृत है। भक्ति करना आसान नहीं है। इसके लिए मंथन करना पड़ता है। जीवन रूपी सागर का मंथन करने से ही ईश्वर की प्राप्ति होगी। भक्ति में लोभ और भय नामक दो बाधाएं हैं। भक्ति कायरों के लिए नहीं बल्कि निडर व्यक्तियों की डगर हैै।
कार्यक्रम के दौरान लोग कहते हैं भगवान आते नहीं… सच्चे मन से तुम उन्हें बुलाते नहीं।, मेरे तो आधार सीताराम के चरणारविंद, अमृत है हरी नाम जगत, हरि नाम नहीं तो जीना क्या? आदि भजनों से उपस्थित श्रद्धालुओं को आत्मविभोर कर दिया। श्रीमद् भागवत कथा महापुराण के आयोजक शिवकुमार मौर्य ने बताया कि यह कार्यक्रम 27 अगस्त तक चलेगा।
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