छज्जू राम जब बन गया आफिस में बास,
पों बारह हो गई उसकी नौकरी आयी रास।
रोज़ सूट बूट डालकर गले में टाई लगाए,
चश्मा लगा कर शान से वो दफ्तर जाए।
    उसके सारे कर्मचारी रोज़ खाना घर से लाएं,
    छज्जू राम बॉस जो ठहरा खाना ले ना जाए।
    लंच जब होता, कर्मचारी खाना जब खाएं,
    साथ उनके खाना खाने छज्जू राम आ जाएं।
कर्मचारी सब अपने पैसों से चाय मंगवाते,
छज्जू राम रोज़ वहां मुफ्त चाय पी जाते।
हर किसी पर नज़र वो रखते ना देते आराम,
डांट उसे पड़ जाती जो उनको ना करे सलाम।
   छज्जू राम की मुफ़्तख़ोरी नें सभको परेशान कर डाला,
   रोज़ कर्मचारी युक्ति लड़ाते,  इससे कैसे छुड़ाएं पाला।
   एक दिन आफिस में एक नई महिला कर्मचारी आयी,
   मुफ़्तख़ोर इस बॉस से उसने थी सबकी जान बचाई।
महिला कर्मचारी को छज्जू राम जब भी था बुलाता,
बटुआ खोल कर पेसे वो देता 2 कप चाय  मंगवाता।
कर्मचारियों के साथ बैठकर मुफ्त खाना  ना खाता,
केन्टीन से वोह लंच मंगवाता अपने कमरे में खाता।
बृज किशोर भाटिया

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