“कलम”

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आज फिर किसी ने  मेरे हाथों में कलम थमा दी ।
 मेरे शरीर के अंदर जैसे रक्त की गति बढ़ा दी।
तन्हा सा जा बैठा था, मैं दुनिया की भीड़ से,
मेरी चुप पड़ी कलम को क्यों ज़ुबां लगा दी ।
प्रदूषण बढ़ती जाती है वाहनों  के शोर से,
गाड़ियों ने चलने वालों पे क्यों ब्रेक लगा दी।
बेकार सा ही पड़ा था मैं पाथू पिने कि तरह,
मेरे अंदर अब लिखने की हसरत जगा दी।
कसम तुझे अब कलम मेरी, झूठ ना लिखना,
भेदभाव किये बिना सदा सच्च ही लिखना।
लोगों को आपस में जोड़ने का तू  काम करना,
देश में फूट डालने वालों का लिहाज़ ना करना।
भगवद्गीता के संदेश को तू घर घर में पहुँचाना,
कर्म के मंत्र को तू हर एक के दिल में बसाना।
अज्ञानता अभिशाप है ये अनपढ़ जान पाएं,
साक्षरता से विकास है  अनपढ़ समझ पाएं।
लोगों के अंदर  काम करने की ज्योत जगाना,
छोड़ें भीख मांगना, सीखें मेहनत से कमाना।
जात पात के बंधन में लोग फंसने ना पाएं,
सभी धर्म एक हैं , लोगों को समझा पाएं।
नारी जाति के गौरव की सदैव रक्षक बनना,
विरोध करना तूं  दुष्कर्मों का मौन ना धरना।
बच्चों में हमेशा अच्छे संस्कारों को  तुम जगाना,
मां बाप, गुरु व देश भक्ति की उनमें ज्योत जलाना।
शहीदों की कुर्बानी को हमेशा याद तू रखना,
शहीदों के परिवारों के लिए सम्मान तू रखना।
हर एक को सत्य और धर्म का मार्ग दिखाना,
पीड़ितों के लिए , उनकी आवाज़ बन जाना।
अधिकारों की सीमा  के प्रति लोग जान जाएं,
अधिकार कर्तव्यों से सुरक्षित हैं सब जान पाएं।
बृज किशोर भाटिया, चण्डीगढ़

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