“पानी पियो सैर करो”

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वो मुझसे इन्कार की बातें करते हैं,
हमेशा से तकरार की बाते करते हैं,
सैर करने को कहो तो चिढ़ जाते हैं,
कम पीते हैं पानी, प्यार कम करते हैं।
                मैं हर रोज़ सुबह उठ जाती हूँ,
                उनकी उठने में देर हो जाती है
                खाना बना के कालेज जाती हूँ,
                वो रोज़ दफ्तर लेट हो जाते हैं।
कालेज तो जल्दी बंद हो जाता है,
मैं घर वापिस जल्दी आ जाती हूँ,
कामवाली से बतर्न मंझवा कर,
घर की सफाई भी करवाती हूँ।
               कम्पनी में देर रात तक काम चलता है,
               वो रोज़ रात 10-11 बजे घर आते हैं,
               कई बार बहुत रात तक काम करते है,
               खाना आफिस में ही खा कर आते हैं।
काम की वजह से वो थके थके से रहते हैं,
सैर नहीं हो पाती ना पूरी नींद ले पाते हैं,
पूरा दिन कम्प्यूटर पर वो माथा खपाते हैं,
वजन बढ़ गया है औऱ चक्कर भी आते है।
               जिस दिन कभी वो वक्त पे घर आते हैं,
               हम दोनों समय पे रात का खाना खाते हैं,
               अगर कहूँ चलो आज थोड़ी सैर कर आएं,
               नां जाने के साथ मेरे कई बहाने बनाते हैं।
मैं भी कैसे हार मान कर बैठ सकती हूँ,
फोन पर सासू मां को मैं सब बताती हूँ,
डांट जब मम्मी से पड़े, मैं हंसी दबाती हूँ,
कैसे मुश्किल से फिर सैर पे ले के जाती हूँ।
-बृज किशोर भाटिया,चंडीगढ़

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