एक बार फिर पेश है नया किस्सा। आज का किस्सा एक ऐसे शख्स पर जिसके मुँह पर नहीं बल्कि पेट में दाढ़ी है। अब जिन लोगों को इस मुहावरे का अर्थ नहीं पता है उनको बता दें कि पेट में दाढ़ी का मतलब है बहुत चालाक होना। यूं तो आज के जमाने में सीधा कोई नहीं है सब अपनी जगह सयाने/चालाक ही हैं। लेकिन इतनी चालाकी करना कि अपने फायदे से ज़्यादा दूसरों का नुकसान सोचना, यह कुछ ज़्यादा ही हो गया।

चलिए अब यह भी बता देते हैं कि यह शख्स एक पीआर है जिसके लालच की कोई सीमा नहीं है। इसको अपना काम सही से करने से ज़्यादा दूसरों का बिगाड़ना पसंद है। इसके चंडीगढ़ मीडिया में घुसने से पहले काम काफी हद तक सही चल रहा था। ऐसे मेरा कहना नहीं है, बल्कि सभी का कहना है। जब से यह शख्स आया है तब से प्रोफेशनलिज़्म की धज्जियां उड़ गई हैं। अपना काम बनाने के लिए दूसरे का बिगाड़ना, दूसरों के काम छीनना, दूसरों की चुगली करना, मतलब हर वो काम करना जिससे दूसरे का नुकसान हो। इसको यही सब अपना काम लगता है। इतनी चालाक तो मौहल्ले की वो आंटियां भी नहीं होती जिनकी नज़र हमेशा दूसरों के घरों पर रहती है। यह तो उनसे भी कई कदम आगे है।

मिसाल के तौर पर यदि किसी और की कोई कांफ्रेंस चल रही हो तो यह उसमें भी घुस जाता है और सब पता करने की कोशिश करता है। उसके बाद यह हर वो तरीका अपनाता है जिससे उस कॉन्फ्रेंस को खराब किया जा सके। उसके लिए चाहे पत्रकारों को भड़काना हो या सीधा जिसकी कॉन्फ्रेंस है उसको ही भड़का देना हो। अगर मौके पर कुछ न हो सके तो यह दूसरों की खबरें रुकवाने तक की भी कोशिश करता है। आपको पता भी नहीं होगा कि आपसे पहले सुबह-सुबह यह शख्स अख़बार खोलकर आपकी ख़बर देख लेता है कि कहीं इतना रोकने के बाद भी इसकी ख़बर लग तो नहीं ना गई।

मेरी नज़र में ऐसा करना आसान नहीं है और इसके लिए साथ लगता है। अब सच बोलूं तो बहुत लोगों को मिर्ची लगेगी। लेकिन बहुत से पत्रकार हैं जिनका समर्थन होने से यह शख्स बहुत ज़्यादा उड़ता है। जानते वो सब भी हैं कि यह गलत चीज़ें करता है लेकिन अपने फायदे के लिए वे सब चुप रहते हैं। किसको पसंद है कि उसके बेनिफिट्स चले जाएं?

अब हर आर्टिकल फन या हँसने के लिए नहीं होता और हर आर्टिकल सीरियस भी नहीं होता। कुछ चीज़ें मैं दूसरों की समस्या देखकर भी लिखती हूँ। बहुत बार मुझे मेसेज आते हैं कि दूसरों की समस्या पर क्यों नहीं लिखते। तो भाई जिनकी समस्या पर लिखती हूँ तुम्हें वो मज़ाक लगती हैं उसमें मेरा क्या कसूर?? आज भी यह उन सभी पीआर व पत्रकारों के लिए लिख रही हूं जो इस शख्स से बहुत ज़्यादा परेशान हैं।

हर किसी में दम नहीं होता कि वो सामने आकर बोल सके और कई लोग सही समय का इंतज़ार कर रहे होते हैं। लेकिन उससे ऐसे लोगों की हिम्मत और बढ़ जाती है। पीआर हो या पत्रकार दोनों एक दूसरे से जुड़े हैं। दोनों का ही एक दूसरे के बिना काम नहीं चलता। ऐसा माहौल सिर्फ़ हमारी चंडीगढ़ मीडिया में ही है कि पीआर प्रोफेशन का नाम ख़राब होता जा रहा है। अगर यही हम किसी बड़े शहर की मीडिया की बात करें तो पीआर को पूरी इज़्ज़त-सम्मान मिलता है।

एक हमारे यहां है कि कोई भी आकर खुद को चंडीगढ़ मीडिया का किंग बोलने लगता है। जी हां, यह शख्स कहता है कि यह चंडीगढ़ मीडिया का किंग बनेगा और हम लोगों में से ही कुछ हैं जो ऐसे लालची, अनप्रोफेशनल लोगों को अपना राजा बनाने में लगे हैं।

आपके लिए हो या न हो लेकिन बहुत से अन्य पीआर व पत्रकारों के लिए यह बहुत बड़ी समस्या है जिससे वे बहुत ज़्यादा तंग हो चुके हैं। मेरी नज़र में आज से 10 साल पहले जब मैं मीडिया में आई थी तब कुछ सिस्टम हुआ करते थे, आज अपनी चीज़ फ़ायदा और दूसरों का नुकसान सिर्फ़ एक मज़ाक बन गया है। काम की तो पूछो ही मत। उससे किसी को कुछ लेना देना नहीं है। वो भी कोई करने की चीज़ है भला।

कुछ लोगों के लालच की कोई सीमा नहीं होती है। यह शख्स इस बात का परफेक्ट एग्जाम्पल है। अब आप सभी खुद ही सयाने हैं कि आपको ऐसे लोगों को राजा बनाना है या कुछ और!!

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