न रोधयति मां योगो न सांख्यं धर्म एव च ।
न स्वाध्यायस्तपस्त्यागो नेष्तापूर्तं न दक्षिणा ॥
व्रतानि यञश्छन्दांसि तीर्थानि नियमा यमाः ।
यथावरुन्धे सत्सङ्गः सर्वसङ्गापहो हि माम् ॥
अर्थात् हे उद्धव; सारी सांसारिक आसक्तियों को नाश करने वाले सत्संग के द्वारा जिस प्रकार मैं पूरी तरह वश होता है, उस प्रकार योग, सांख्य, धर्म, स्वाध्याय, तप, त्याग, यागीद वैदिक कर्म, कुंए-कावड़ी बनाने और बाग़ लगाने, दान-दक्षिणा, व्रत, यज्ञ वेदाध्ययन तीर्थ यात्रा, नियम, यम आदि किसी भी साधन से नहीं होता। परन्तु सत्संग के लिए साधु कैसे होने चाहिए इस बात पर भी विचार करना आवश्यक है। श्री मदभागवत गीता के दूसरे अध्याय में स्थित प्रज्ञ पुरुषों के, बारहवें अध्याय में भक्तों के व चौदहवें में ग्रह्णातीत पुरुषों के लक्षण बतलायें गयें हैं। श्री मदभागवत में संतों के लक्षण बतलाते हुए श्री कपिल देव जी महाराज अपनी माता से ये कहते हैं।
कथा के समापन के बाद आरती व भंडारा हुआ जिसमें सैंकड़ों श्रद्धालु शामिल हुए।