26 अक्टूबर 1947 को जम्मू-कश्मीर के राजा हरि सिंह ने विलय संधि पर दस्तखत किए थे। उसी समय अनुच्छेद 370 की नींव पड़ गई थी, जब समझौते के तहत केंद्र को सिर्फ विदेश, रक्षा और संचार मामलों में दखल का अधिकार मिला था। 17 अक्टूबर 1949 को अनुच्छेद 370 को पहली बार भारतीय संविधान में जोड़ा गया।
जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाने के लिए सरकार ने सोमवार को राज्य पुनर्गठन विधेयक भी पेश किया। इसे बाद में पास कराया जाएगा। शाह ने कहा कि जम्मू-कश्मीर दिल्ली और पुड्डुचेरी की तरह केंद्र शासित प्रदेश रहेगा यानी यहां विधानसभा रहेगी। वहीं लद्दाख की स्थिति चंडीगढ़ की तरह होगी, जहां विधानसभा नहीं होगी।
सीएम से ज्यादा उपराज्यपाल ताकतवर होगा
राष्ट्रपति उपराज्यपाल की नियुक्ति करेंगे
केंद्र सरकार उपराज्यपाल के नाम की सिफारिश राष्ट्रपति से करती है। आमतौर पर राष्ट्रपति केंद्र द्वारा अनुमोदित नाम पर मुहर लगाते हैं। यानी अब मोदी सरकार जिस व्यक्ति का नाम उपराज्यपाल के लिए सुझाएगी, उसे राष्ट्रपति स्वीकार कर लेंगे। अभी सत्यपाल मलिक जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल हैं।
सुरक्षा व्यवस्था केंद्र के अधीन रहेगी
दिल्ली सरकार और केंद्र के बीच मुख्य विवाद ब्यूरोक्रेसी और पुलिस को लेकर रहा है। संवैधानिक व्यवस्था के तहत दिल्ली की सुरक्षा का जिम्मा भारत सरकार के गृह विभाग का है। यानी सीधे तौर पर दिल्ली पुलिस केंद्र सरकार के अधीन आती है। जम्मू-कश्मीर में भी अब यही होगा।
ब्यूरोक्रेसी पर भी केंद्र का नियंत्रण
राज्य में आईएएस और आईपीएस अफसरों की तैनाती का अधिकार केंद्र सरकार यानी उपराज्यपाल के पास होगा। दिल्ली में अफसरों की तैनाती को लेकर केंद्र और केजरीवाल सरकार का टकराव रहा है। यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। इसी साल फरवरी में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भ्रष्टाचार रोधी ब्यूरो में ग्रेड एक और ग्रेड दो के अधिकारियों की नियुक्ति और तबादले का अधिकार केंद्र के पास रहेगा। सामान्य तौर पर देखें तो जम्मू-कश्मीर की राज्य सरकार के पास सामान्य प्रशासनिक सेवाओं के अलावा ज्यादा कुछ नहीं रहेगा। उपराज्यपाल केंद्र के निर्देश के अनुसार सुरक्षा से संबंधित फैसले करेगा। इस मामले पर राज्य सरकार का नहीं, बल्कि उपराज्यपाल का फैसला मान्य होगा।