चंडीगढ़
18 नवंबर 2018
दिव्या आज़ाद
आर्य समाज सेक्टर 7 बी का 60वा वार्षिक उत्सव बड़े धूमधाम से संपन्न हो गया है। कार्यक्रम के दौरान डॉ.जगदीश शास्त्री ने अपने व्याख्यान में कहा कि मानव जीवन का लक्ष्य परमानंद की प्राप्ति है। मनुष्य प्रतिदिन वस्तुओं का भोग सुख प्राप्ति के लिए करता है। भोग से बड़ा सुख ज्ञान की प्राप्ति है। परम सुख प्राप्ति के लिए ब्रह्मानंद का ही ध्यान करना चाहिए। मनुष्यों को जीव और प्रकृति की उपासना नहीं करनी चाहिए। एकता और अनुकूलता का बड़ा सुख होता है। दुनिया में अशांति का कारण अनेक संप्रदायों का होना है। मनुष्य को एक दूसरे के साथ द्वेष की भावना नहीं रखनी चाहिए और ना ही प्रतिकूल व्यवहार करना चाहिए। हमारे उपासना के मंत्र समान हों। उन्होंने कहा कि एकता का प्रमाण सर्वत्र है सबका परमात्मा एक है। जिसे मनुष्य चलाता है वह मत, मजहब और संप्रदाय हैं। सबका धर्म सनातन है अर्थात वह सदैव रहने वाला है। यह हमेशा नवीन होता है। सत्य, अहिंसा, तप, स्वाध्याय आदि धर्म के लक्षण हैं। धर्म ग्रंथ अर्थात वेद ईश्वर ने सृष्टि उत्पन्न के समय से ही मनुष्यों को दिए गए हैं। बिना ज्ञान के मनुष्य अपनी आवश्यकताएं पूरी नहीं कर सकता है। वेद सृष्टि के आरंभ में दिए गए हैं। यूएनओ ने भी चारों वेदों को विश्व धरोहर ज्ञान के रूप में माना है।
डॉ. वीरेंद्र अलंकार ने अपने प्रवचन में कहा कि महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने सत्यार्थ प्रकाश में उल्लेख किया है कि ईश्वर द्वारा सृष्टि का निर्माण करने का प्रयोजन उसकी अभिव्यक्ति है। ईश्वर के अंदर गुण और सामर्थ्य है। गुणवान की गुणवत्ता प्रकट हो इसी उद्देश्य से परमात्मा ने सृष्टि का निर्माण किया है। परमात्मा में सृष्टि उत्पन्न करने, पालन करने और विनाश करने की सामर्थ्य है। मनुष्य जैसा कर्म करता है समय-समय पर वैसा ही परिणाम पाता है। अच्छा जीवन वहीं है जहां कुछ करने का मौका मिलता है। मनुष्य जीवन में यह संभव है। वेदों में पूरी धरती पूरे आकाश और वायुमंडल की बात की गई है। यह किसी एक देश के नहीं बल्कि समस्त प्राणी मात्र के लिए है। ब्रह्मा और वेद एक हैं। वेद ब्रह्मा की वाणी है। वेद का अर्थ ईश्वर भी है जो सारे जगत चराचर को जानता है। वेद संपूर्ण मानवता पर लागू होता है। ज्ञान हमेशा शांति देता है।
कार्यक्रम के दौरान आयुषी शास्त्री ने कहा कि प्रत्येक मनुष्य में आत्मविश्वास का होना जरूरी है। यह तभी संभव है जब सही कर्म करेगा। आपस में द्वेष की भावना नहीं रखनी चाहिए। उन्होंने कहा कि बच्चों की प्रथम गुरु माता ही है। वह बच्चों में अच्छे संस्कार डाले। उन्होंने बच्चों को जागरूक बनाने पर भी बल दिया।
स्वामी संपूर्णानंद सरस्वती जी ने कहा कि वेद विरुद्ध आचरण करने वाला मनुष्य पापी है। जीवन का प्रारंभ दूध से ही होता है इसलिए प्रत्येक मनुष्य को शाकाहारी होना चाहिए। परमात्मा ने हमारे शरीर को शाकाहार के लिए बनाया है। मांसाहारी व्यक्ति भय और तनाव में रहता है। वह दूसरों से द्वेष करता है। इस मौके पर उन्होंने शाकाहार होने के गुण बताए और मांस खाने वाले व्यक्तियों के शरीर और मन में आने वाले विकारों के बारे में अवगत कराया। उन्होंने कहा कि सभी मनुष्यों को मांस का परित्याग कर देना चाहिए क्योंकि सारी व्यवस्था प्रकृति के हाथ में ही है। कार्यक्रम के दौरान चंडीगढ़़, पंचकूला, सूरजपुर, डेराबस्सी, मोहाली और रोपड़ के कई शिक्षण संस्थाओं और आर्य समाजों से गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।