मिली आज़ादी पर घर जलने लगे,
बंटे लोग वो आपस में लड़ने लगे,
देश बांट कर अंग्रेज़ निकलने लगे,
सत्ता के लोभी बंटवारा करने लगे।
देश 2 टुकड़ों में विभाजित हुआ,
1947 का कोहराम देखा न गया,
कोई अनाथ तो कोई बे घर हुआ,
बे हिसाब मरे खून का दरिया बहा।
बक़रीद में इतने बकरे ना कटे,
उससे ज़्यादा इंसानी सर कटे,
गले मिलते थे रोज़ वो जा बंटे,
दुश्मन बन आपस में जा डटे।
देश के बंटवारे का दर्द क्या होता है,
वो जानें जिनका सब स्वाह होता है,
बेघर ओर बिछड़ने से क्या होता है,
अर्श से फर्श मिलने पर जो होता है।
भारत देश के हम सब हैं वासी,
सभी समानता के हैं अधिकारी,
क्यों बंटे धर्म,जाती/आरक्षण से,
बता दो उन्हें जिन्हें सत्ता प्यारी।
-बृज किशोर भाटिया,चंडीगढ़