चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के सूर्योदय से ब्रह्मा जी ने सृष्टि रचना प्रारंभ की थी। सम्राट विक्रमादित्य ने इसी दिन राज्य स्थापित किया, उन्हीं के नाम पर विक्रमी संवत् का पहला दिन प्रारंभ होता है। चैत्र माह में माता के पहले नवरात्रि से नव वर्ष का प्रारंभ हो जाता है। व्यापारियों के पुराने बही खाते बंद होकर नए बही खातों का खुलना, बच्चों की नई कक्षा की शुरुआत होना।
बसंत ऋतु का आना, फसलों का पकना, वृक्षों पर नए पत्ते और फूलों का खिलना, प्रकृति भी झूम झूम कर नव वर्ष के आगमन पर हर्षित हो अनगिनत संकेत देती है।
अन्य ऐतिहासिक कारणों से भी इस दिन का बहुत बड़ा महत्व है। हमें नववर्ष बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाना चाहिए। हरियाली फैली चारों ओर, नव श्रृंगार प्रकृति ने किया।
चैत्र माह में ऐसे कुछ नववर्ष का आगमन हुआ
नए पत्ते और कलियां, वृक्षों पर लहराई हैं।
बीता पतझड़ और प्यारी सी बसंत ऋतु आई हैं।
पेड़-पौधों पर फूलों का खिलना, उल्लास हवा में घुल जाता है। ब्रह्मा जी द्वारा सृष्टि निर्माण का प्रारंभ यह दिन कहलाता है। कल्प, सृष्टि और युगों का भी यह प्रारंभिक दिवस कहलाया। स्थापित किया राज्य विक्रमादित्य ने नववर्ष विक्रमी संवत् है आया। आज का दिन ही आर्य समाज की स्थापना का दिवस भी होता है ।
स्वामी दयानंद सरस्वती जी द्वारा वेदों का प्रचार फिर होता है। अंगद देव जी और महर्षि गौतम जन्म इस दिन ही पाए थे। नौं दिन के नवरात्रि मां के चैत्र माह में आए थे। शक्ति, भक्ति और मौसम का सुंदर वर्णन मिल जाता है। राज्याभिषेक श्रीराम, युधिष्ठिर का मनमोहक दृश्य बन जाता है। किसान भी अपनी मेहनत का फल इसी समय में पाता।
पसीना उसका धरती में मिलकर जब सोना बन जाता
पक जाती हैं फसलें सारी उमंग नई छा जाती है।
पुष्पों की सुगन्धि ऐसी सांसों में उतरती जाती है।
मांगलिक अवसर नववर्ष का, देव, महापुरुषों को याद करो। वंदनवार, पुष्पों से सजाओ, गौशाला में दान करो
हमें यह भारतीय नववर्ष हर्षोल्लास से मनाना है।
अवश्य है उत्सव सब जानें रंगोली रंगों से सजाना है।
लेखिका: मंजू मल्होत्रा फूल