मीडिया एक ऐसा फील्ड है जिसका अपना एक अलग ही रुतबा है। पिछले कुछ समय से बहुत से स्वयंभू पत्रकार उभरकर सामने आए जिनको केवल इवेंट्स में जाकर खाना खाने और गिफ्ट्स लेने का काम करना आता था। लेकिन इस फील्ड में लंबे समय तक बने रहने के लिए जरूरी है टैलेंट होना व अच्छा नेटवर्क बना पाना।
धीरे-धीरे बहुत से स्वयंभू पत्रकार खुद फील्ड से आउट होते नज़र आए क्योंकि वे उतना अच्छा नेटवर्क बनाने में कामयाब न हो सके। लेकिन बहुत से स्वयंभू पत्रकार ऐसे भी थे जिनको किसी न किसी असली पत्रकार का सहारा मिल गया और इस प्रकार उनका नेटवर्क बन गया जिससे वे फील्ड में टिक पाने में कामयाब हुए।
नेटवर्क तो बन गया लेकिन हरकतें उनकी फिर भी वही रहीं। उनको फील्ड में बने रहने में केवल यही दिलचस्पी थी कि उनका खाना व गिफ्ट्स बंद न हो जाएं। इतने समय फील्ड में रहने के बाद भी उन्होंने एथिक्स नहीं सीखे… ख़बर के नाम पर उनको 2 शब्द तक लिखने नहीं आए आजतक। लेकिन गिफ्ट न मिलने पर मुँह बनाना जरूर आता है।
बात करें ऐसे ही एक स्वयंभू पत्रकार की जिसको अपना कैरियर बनाने का बहुत सुनहरा मौका मिला था लेकिन उसने केवल इवेंट्स में जाकर गिफ्ट्स बटोरना सही समझा। उस स्वयंभू पत्रकार को 1 भी न्यूज़ बनानी नहीं आती है लेकिन बातें बनाने में माहिर। आपको वो किसी ऐसे इवेंट में नज़र नहीं आने वाला है जहां गिफ्ट न मिले व ऐसी हर जगह उसकी मौजूदगी होगी जहां गिफ्ट मिलने वाला है।
इतना ही नहीं, यदि किसी इवेंट में गिफ्ट मिल रहे हों और उसको गिफ्ट न मिले तो आपको उसका मुंह बनता भी आसानी से नज़र आ जाएगा। इसके बाद यदि कोई पीआर सेलेक्ट मीडिया बुलाए और उसको न बुलाया जाए व अच्छे गिफ्ट्स दिए गए हों तो वह पीठ पीछे पीआर को सबके सामने कोसने में भी देर नहीं लगाता है।
ऐसे स्वयंभू पत्रकारों को न जाने यह कब समझ आएगा कि मीडिया गिफ्ट्स बटोरने और फ्री का खाना खाने वाला फील्ड नहीं है। यहां उसको ही इज़्ज़त मिलेगी जो काम करेगा और अपनी ख़बरों से कोई इम्पैक्ट लाएगा। गिफ्ट्स व खाना मीडिया वालों को उनके काम का आभार व्यक्त करने के लिए दिए जाते हैं न कि कॉपी-पेस्ट करके स्वयंभू पत्रकार बन बैठने के लिए।
इसके साथ ही उन पत्रकारों को भी सुधरने की जरूरत है जो ऐसे लोगों का साथ देते हैं जिनको ख़बर का मतलब तक नहीं पता पर गिफ्ट बटोरने में सबसे आगे आ जाते हैं। अपनी फील्ड को खराब करवाने में बहुत से असली पत्रकारों का हाथ भी शामिल है।