“उजाला”

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जिस पथ पर चला है तूं
उस पर साथी कोई नहीं
अंधेरा ही अंधेरा राहों में
उजाला मिलेगा दूर कहीं
टेढ़े मेढे मोड़ मिलेंगे तुझे
कांटों पर भो चलना होगा
कई ठोकरें भी लगेंगी तुझे
पग सम्भल के धरना होगा
सुनसान जंगल के भीतर
खूंखार पशु मिलेंगे तुझे
वृक्षों की शाखाओं पर
अजगर भी मिलेंगे तुझे
वेग से बहती गंगा नदी
हिम्मत तेरी आजमाएगी
तैर कर पार करेगा जो
आशीष उसे दे जाएगी
लक्ष्य की ओर तूं बढ़ता चल
रात अंधेरी निकल जाएगी
दृढ़ संकल्प पाने का हो जब
रात उजाला रोक ना पाएगी।
-बृज किशोर भाटिया,चंडीगढ़

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