आज का किस्सा एक प्रख्यात हिंदी अखबार के बारे में है जो बहुत समय से घाटे में चल रहा है। यह अखबार एक पॉलिटिशियन द्वारा चलाया जाता है और यह अख़बार काफी समय से घाटे में है। इसको फिर से वही पहचान दिलाने के लिए हर प्रयास किए गए लेकिन सब व्यर्थ।
अब अखबार के मालिक जल्द ही अंग्रेज़ी अखबार शुरू करने वाले हैं। हैरानी की बात यह है कि हिंदी अखबार का बुरा हाल चल रहा है। वर्षों पुराने कर्मचारियों को एक दम से निकाल दिया गया और नए पत्रकार भी रख लिए। इसके बावजूद कोई फायदा नहीं हुआ। जो नए पत्रकार रखे वे खुद को मालिक समझने लगे हैं।
अखबार में इस समय यह नए पत्रकार केवल पैसे लेकर ख़बरे लगाने लगे हैं। ऐसे अनप्रोफेशनल पत्रकारों ने पैसों का लेन-देन खुलेआम शुरू कर दिया है। हिंदी के अखबार में जो काम करने वाले पत्रकार रखे गए हैं उनकी ख़बरे प्रकाशित ही नहीं की जाती और किसी को फील्ड में भी जाने नहीं दिया जाता। ख़बरे यहां 100-100 रुपए में बिकने लगी हैं। मालिकों का इस ओर ध्यान ही नहीं है कि उनका हिंदी अख़बार अब एक बिकाऊ पत्रकार चला रहा है जिसे किसी ख़बर की एहमियत से कोई लेना देना नहीं है बल्कि उसे सिर्फ अपनी जेब भरनी है फिर चाहे अखबार घाटे से भी नीचे चला जाए।
हैरानी की बात यह है कि यह पत्रकार जिसके हाथ में मालिकों ने हिंदी की बागडोर दे दी है इसे पहले 2 अखबारों से इसके व्यवहार को देखते हुए निकाल दिया गया था लेकिन इस हिंदी अखबार के घाटे को देखर कोई भी इसमें काम करने के लिए राज़ी नहीं हो रहा था इसलिए मालिकों ने बिना सोचे समझे इस बिकाऊ पत्रकार को अखबार सौंप दिया।
इसके आते ही कई वर्षों से मेहनत से काम करने वाले पत्रकारों को एक झटके में निकाल दिया गया और वे आज घर बैठने पर मजबूर हो गए हैं। मालिक यह भूल गए कि बुरे समय में यह सभी पत्रकार इनके अखबार को संभाले हुए थे।
हिंदी अखबार में इस समय काम करने वाले सभी पत्रकार परेशान हैं क्योंकि न उनकी खबरें लगती हैं और न ही उन्हें काम करने की आज़ादी है। जिस पत्रकार को मालिकों ने बागडोर दी है वह यहां मनमानी करके पत्रकारों का काम करना भी मुश्किल कर चुका है। इतना ही नहीं हर पीआर कंपनी को साफ बोल दिया गया है कि पैसा दिए बिना 1 भी ख़बर नहीं लगेगी।
जहां मालिकों को अपने हिंदी अखबार की ओर ध्यान देने की जरूरत है वहीं वे इसको बिकाऊ लोगों के भरोसे छोड़ अंग्रेज़ी का नया अखबार शुरू करने में लगे हैं जिसके लिए नया स्टाफ रखा जाएगा। मालिकों से वर्तमान स्टाफ संभल नहीं रहा और इनको नया स्टाफ रखना है।
सही कहते हैं लोग आजकल खबरों की एहमियत नहीं रही… लेकिन यहां तो पत्रकारों की भी नहीं रही। सब कुछ कमर्शियल होता सुना और देखा था लेकिन यहां तो 100-100 रुपए में ख़बरें बिक रही हैं और मालिकों को अंग्रेज़ी की पड़ी है।
Very nice article divya. I really appreciate this.