“राख बन कर”

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राख बन कर मुझे इक दिन चले जाना है,
मिट्टी से जन्मां हूं मिट्टी में ही मिल जाना है।
सजे तन पे कपड़े भी सब यहीं रह जाएंगे,
बैंकों में पड़े पैसे किसी काम नहीं आएंगे।
खाली हाथ आये थे खाली हाथ जाना है।
                              राख  बन कर……
मेरे अपने भी मुझे सब छोड़ जाएंगे,
सांसे जब तक हैं तब तक निभाएंगे,
इस सफर में मुझे अकेले ही जाना है।
                              राख बन कर……..
बहुत मिला मुझे अपनों से ओर बेगानों से,
करजाई रहा हूं मैं इन सबके एहसानों से,
मुझे इन सब का कर्ज चुका के जाना है।
                              राख बन कर…….
लगता है मुझे यह वक्त नहीं अब दूर मुझसे,
जो छोड़ कर चले गए अब पुकारते हैं मुझे,
बहुत जल्दी मुझे उन सब के पास जाना है।
           राख बन कर मुझे इक दिन चले जाना है,
           मिट्टी से जन्मा हूं मिट्टी में मिल जाना है।
बृज किशोर भाटिया,चंडीगढ़

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