कहते हैं कि आदमी जितना मर्ज़ी बड़ा बन जाये परन्तु उसमें अभिमान का विकास नहीं होना चाहिए। जिस जिस नें अहँकार किया उसका ही विनाश हुआ। ये केवल कहने की बात नहीं अपितु इतिहास साक्षी है कि अभिमान मनुष्य को पतन के मार्ग की तरफ ले जाता है और उसने जो कुछ भी अपनी मेहनत और विवेक से अर्जित किया होता है उसको नष्ट करवा बैठता है। रामायण में वर्णन मिलता है कि रावण कितना विद्वान और ज्ञानी था लेकिन उसके अहंकार के कारण न केवल उसका विनाश हुआ परंतु उसने अपने परिवार व पूरी लंका का विनाश करवा डाला।
जो मनुष्य सफलता पाने के उपरांत भी अपने पांव धरती पर ही रखता और अभिमान को अपने से कोसों दूर रखता है सही मायने में वह एक सफल व्यक्ति माना जा सकता है। परन्तु बहुत से ऐसे उधाहरण आज कल देखने को मिलते हैं जहां मध्य्म वर्ग में से कुछ लोग थोड़े से अच्छे पद पर पहुंच कर अभिमान से भर जाते हैं और अपने साथ काम करने वालों के साथ अभद्र व्यवहार करना शुरू कर देते हैं जिससे वह घृणा के पात्र बन बैठते हैं। कई लोग तो अपने को ऊँचा दिखाने के लिए अपने रिश्तेदारों को भी अनदेखा करने से नहीं चूकते और गल्ती से अगर कोई रिश्तेदार या सम्बन्धी किसी मुसीबत में उनसे मदद मांगने या मशवरा लेने चला जाये तो बातों ही बातों में ये लोग उसे भी खरी खोटी सुनाने से बाज नहीं आते। कुछः तो ऐसे भी हैं जिनको रिशतों का एहसास नहीं होता और ऐसे लोगों के दिलों में अपने मां बाप वा अन्य बजुर्गों के लिए भी कोई इज़्ज़त नहीं होती । उनके लिए तो बस झूठे अहंकार में जीना होता है , मां बाप को अगर चिकित्सक तक भी दिखाने को लेकर जाते हैं तो उनपर अपना एहसान जतलाते हैं और लोगों को बढे शान से बतलाते हैं कि किस तरह अपने रसूक का इस्तेमाल कर के इन्होंने अपने माता पिता को बड़े डॉक्टर को दिखाया है। कोई बजुर्ग रिश्तेदार बीमार हो तो ऐसे में यह उस बजुर्ग से ये उमीद लगाते हैं कि वह इनके आगे पीछे घूमता रहे और अगर बज़ुर्ग अस्पताल में दाखिल हो और ऑपरेशन होना हो तो ये लोग उसको हॉस्पिटल में देखने की बजाय इस बात से नाराज़ हो जाते हैं कि ऑपरेशन कितने बजे शुरू होना था बतलाना चाहिए था, ये अपने औहदे के अहँकार के नशे में इतना डूब चुके होते हैं कि अगर इन्हें बीमार बज़ुर्ग के इलावा कोई और रिश्तेदार जानकारी दे भी तो यह इसमें भी अपनी तोहीन समझते हैं और इस लिए ना तो ऐसे लोग बीमार बज़ुर्ग के स्वास्थ्य के बारे में पूछने जाते हैं और ना ही फोन कर के ही उसका हाल जानने की कोशिश करते हैं।
किस भर्म में जी रहे हैं ऐसे लोग और किस बात का अभिमान करते हैं । लोगों को दिखाने के वास्ते मां बाप को पूछते हैं और अकेले में उनको बेइज़्त करते हैं। संसार का ये नियम है कि जो जैसा बोता है वैसा ही काटता है अर्थात ऐसे लोगों के साथ भी वैसा होना निश्चित है कि जैसा सलूक इन लोगों ने अपने मां बाप, रिश्तेदारों या अन्य सहयोगियों से किया होता है ठीक वैसा ही बर्ताव इनके साथ होना तेय है वो चाहे इनके साथ इनके सहयोगी करें, रिश्तेदार करें या इनकी अपनी संतान ही क्यों ना करे।
कोई बच्चा कामयाब होता है तो उसके मां बाप या घर के बज़ुर्ग पर्सन होते हैं और आशीर्वाद ही देते हैं। अगर आप अपनी मेहनत से तरक्की करते हो तो इसे अपना सौभाग्य समझो। लोगों के प्रति मधुर व्यवहार रखो, रिश्तों की एहमियत को समझो और उनका मान रखो।अगर कोई मुसीबत में या अन्य किसी कार्य से आपसे कोई सलाह मशवरा लेने आता है तो उसे ये कह कर मत शर्मिंदा करो की आज काम पढ़ गया तो चले आये परन्तु अपने आप को धन्य समझो की ईश्वर ने आपको इस काबिल बनाया है कि आप किसी की मदद कर सकें। एक बात हमेशा याद रखें कि मरना तो एक दिन हर एक को है और श्मशान की आग किसी से भेद भाव नहीं रखती और वह लाश चाहे राजा की हो या रंक की सभी को राख में परवर्तित कर देती है तो फिर अभिमान किस बात का।
बृज किशोर भाटिया, चंडीगढ़