यह कहावत आपने जरूर सुनी होगी और यह कहावत चंडीगढ़ के एक पीआर व्यक्ति पर बिलकुल सही बैठती है। हाल ही में उस पीआर द्वारा करवाई गई एक प्रेस कॉन्फ्रेंस से यह साफ देखने को मिला।
दरअसल बात हो रही है हाल ही में एक नामी अख़बार के ख़िलाफ़ करवाई गई एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की। जैसे की हम अच्छे से जानते हैं कि पीआर और पत्रकार या अख़बार/चैनल/ऑनलाइन मीडिया एक दूसरे से पूरी तरह जुड़ा हुआ है। साफ़ शब्दों में कहें तो दोनों का एक दूसरे के बिना गुज़ारा मुश्किल है। पत्रकार या संस्थान तो फिर भी पीआर के बिना काम चला लेते हैं लेकिन पीआर का काम पत्रकारों व मीडिया संस्थानों के बिना पूरा हो ही नहीं सकता।
अब इन पीआर साहब ने एक बहुत ही बड़े नामी अख़बार के खिलाफ प्रेस कॉन्फ्रेंस तो करवा दी लेकिन फैक्ट्स चेक करने भूल गए। मज़े की बात सुनिए जिस मुद्दे को कॉन्फ्रेंस के आधार बनाया गया वह बेमानी था। पूरे शहर भर के पत्रकार पीछे से इन पीआर की खिल्ली उड़ाते हुए नज़र आए।
इससे ज़्यादा मज़ेदार? इससे ज़्यादा मज़ेदार बात यह है कि जब हमने उस अख़बार के पत्रकारों से बात की तो उनका कहना था कि पहले तो यह पीआर हमें फ़ोन करके मिन्नतें किया करता था कि किसी की ड्यूटी लगा दी जाए न्यूज़ कवर करने के लिए। लेकिन आज जब हमारे ही अख़बार के खिलाफ कॉन्फ्रेंस की तो हमें बताना या बुलाना तक जरूरी नहीं समझा। हैरानी की बात यह है कि जिस मुद्दे को ढाल बनाया गया उसको लेकर अख़बार को शिक़ायत तक नहीं दी गई और सीधा ही सरेआम अख़बार व उसके मालिक का नाम उछाला गया।
अब यह तो प्रोफेशनल एथिक्स ही होते हैं कि बिना कुछ जाने समझे आप ऐसी कॉन्फ्रेंस न करवाएं। पर हां क्या कहें जब कोई डिग्री या प्रोफेशनल काम किया हो तब तो यहां लोगों को एथिक्स समझ आएंगे। दूसरा, इतना भी क्या लालच कि अपनी ही फील्ड के लोगों या संस्थानों के खिलाफ कॉन्फ्रेंस करवा दो, वो भी छुपकर कि कहीं उस अख़बार को पता न चल जाए।
खुद ही सोचिए आप, यहां डायन वाली कहावत सही बैठी या नहीं!
waat
जय श्री नारायण नमः जय श्री नारद मुनि नमः।।
आपने बहुत ही बढ़िया शीर्षक दिया है जो विषय गत तर्कसंगत भी है कि हमें सबसे पहले तो अपने परिवार का ख्याल रखना होता है। उसके बाद समाज का। और बेहतर हो कि हम दोनों का बेहतरीन खयाल रखें। चंद रुपयों के लालच में अवसर पड़ने पर अपनों को ही निशाना बनाऐं। पी आर और पत्रकार एक दूसरे के पूरक हैं। और मर्यादाओं की बांनगी भी ध्यान रखनी चाहिए। भले ही हमारे पास प्रूफ भी हों। तो भी हमें अमुक समाचार पत्र को निमंत्रण देना पहला नैतिक और कानूनी कदम बनता है। लेकिन हम चंद रुपयों के लालच में सब भूल जाते हैं। और यही हमारी अज्ञानता स्वार्थपरकता को दर्शाता है। अनुभव हीनता इसी का नाम है। लेकिन ठोकर खाकर जो सीखे समझे वह भी बड़ी बात होती है ।।
बाकी आज के दौर में हर कोई हद से ज्यादा समझदार है। किसी भी बात को अन्यथा ना लें। धन्यवाद।।