कहा जाता है की भारत भी कभी विश्व में शिक्षा का केन्द्र माना जाता था और देश विदेश से लोग यहां शिक्षा प्राप्ति के लिए आते थे। समय के बदलाव ने ओर विदेशियों के आगमन ने यहां की  संस्कृति और शिक्षा पर गहरा असर डाला है। भारत छोटे छोटे राज्यों में बंटा हुआ था और राज्य विस्तार की भूख को लेकर राज्यों के शासक आपस में लड़ते रहते थे। आपसी शत्रुता ही वो कारण थी जिसने विदेशी शासकों को  भारत में आने का निमंत्रण दिया और भारत कितने वर्षों तक गुलामी के पंजों में झकड़ा रहा। भारत पर कई विदेशी ताकतों का राज्य रहा और विदेशी संस्कृति को ना केवल यहां पनपने का अवसर मिला  बलिक आम भारतीयों को शिक्षा के अधिकारों से भी वंचित रहना पड़ा और  उनके साथ गुलामों जैसा सलूक भी किया गया। कितनी कुर्बानियों के बाद मुल्क 1947 में आज़ाद हुआ और यहां लोकतन्त्र राज्य की स्थापना की गई । भारत में अब जनता द्वारा चुनी गई अपनी सरकार है जो जनता के हित में कल्याणकारी योजनाएं बना कर देश के विकास का कार्य करती है।  बहुत ही खेद से कहना पड़ता है की 70 साल आज़ादी के बाद भी भारत की सरकारें नागरिकों को प्राथमिक शिक्षा उपलब्ध करवाने में पूरी तरह सक्षम नहीं हो पायीं। ऐसा नहीं की 70 सालों में लोगों को शिक्षित करने के प्रयास नहीं किए गए, पर किये गए प्रयासों का जो नतीजा आना चाहिए था वह नहीं आ पाया और उस तक पहुंचने के लिए गांवों में अधिक संसाधनों को पहुंचाने ओर शिक्षा व्यवस्था में सुधार लाने की आवश्यकता है।
             भारत की 70 प्रतिशत आबादी गांवों में रहती है और कई ग्रामिक क्षेत्र ऐसे हैं जो बहुत पिछड़े हुए हैं और वहां स्कूल, बिजली पानी जैसी सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं हैं। गांवों को शहरों तक जोड़ने के लिए अच्छी सड़कें नहीं हैं, पुल नहीं हैं तो ऐसे में वहां के लोगों तक शिक्षा पहुंचाना एक  बड़ी चुनौती बन गयी है और सरकार को इसके बारे में ओर भी अधिक ध्यान देने की ज़रूरत है। अगर हम शहरों में शिक्षा के क्षेत्र की तरफ देखें तो पता चलता है की सरकार की ओर से बच्चों को शिक्षा उपलब्ध करवाने के समय समय पर प्रबन्ध किये गए हैं, उनको माध्यमिक क्षेत्र तक मुफ्त शिक्षा मिल सके, स्कूलों में खाना मिल सके, अनुसूचित जातियों के बच्चों को वितीय सहायता मिल सके आदि आदि।  सरकार ने बच्चों के मनोबल को बढ़ाने के लिये ऐसी लच्छेदार नीती बनाइ जिसके द्वारा कोई भी विद्यार्थी को 9 वीं क्लास तक पहुंचने से पहले फेल नहीं कर सकते औऱ इसीके कारण विद्यार्थियों के अंदर मेहनत करने के जनून ने रोकथाम लगा दी और वो स्कूलों से आकरण अनुपस्थित होना शुरू हो गए। जब बिना पढ़े, बिना स्कूल गए विद्यार्थी पास हो जाएं तो फिर उनको स्कूल जाने की क्या पड़ी है। सरकार द्वारा शिक्षा विकास के नाम पर जो बजट में पैसा मंज़ूर होता है उसका दुरपयोग हुआ, ऐसे बच्चों को जो स्कूल ही नहीं जाते केसी वितीय सहायता, क्यों मुफ्त स्कूलों की वर्दी, कापीयां किताबें ओर स्कूलों में कितनों के लिए दोपहर का खाना बना इस पर किसी का ध्यान नहीं जाता या  हमारे देश के नेता इन सब बातों से अच्छी तरह से परिचित होने के पश्चात भी अपनी आंखें मूंदे बैठे हैं। थोड़ी सी लापरवाही की वजह से ना तो सभी बच्चों को शिक्षा का लाभ ही मिल रहा है और ना ही शिक्षा विकास के लिए जो सरकार धन खर्च कर रही है उसका कोई उचित उपयोग हो रहा है।
          शहरों में मजदूरों के बच्चे, घरों में काम करने वाले/वाली बाईयों के बच्चे म्युनिसिपल पार्कों की शोभा बड़ा रहे हैं। जिनके माता पिता सारा दिन दुकानों/घरों/कारखानों में काम करने जाते हैं और उनके बच्चे सुबह से लेकर शाम तक पार्कों में घूमते रहते हैं। छोटे छोटे बच्चे जिनके पांव ना चप्पल/जूते ओर ना ही तन पर ढंग के वस्त्र पहने नजर आते हैं। यह लापरवाह बच्चे क्या जानें की ज़िंदगी कैसे जी जाती है। बस इनको तो यही पता है की सारा दिन उनको यहीं बिताना है, जो माता खाना दे जाती है उसे खाना है या जो पार्क में घूमने वाले लोगों से मिल जाये उसे भी खाना है। खुला आसमान इनकी छत है और पार्क इनके मनोरंजन का साधन,
शौच के लिये सारा पार्क एक खुला शौचालय है और बगैर रोक टोक के सारा दिन उसका इस्तेमाल करना इनकी आदत बन चुका है। उनको स्कूलों में जाकर पढ़ाई करने के लिए कौन तैयार करेगा क्योंकि खुद उनके माता पिता अनपढ़ हैं और उनको तो बस बच्चे पैदा करने हैं और उनसे बड़े होने पर मज़दूरी करवानी है। हमारे नेताओं ने इन मज़दूरों को एक वोट बैंक बनाने के इलावा कुछ नहीं किया। इनको क्लोनियों में बसाना, मुफ्त बिजली पानी उपलब्ध करवाना, अपनी चुनावी रैलियों में थोड़े से पैसे देकर ले जाना, इनसे दंगे करवाना आदि आदि कितने ही कामों में इनका उपयोग करना लेकिन राजनेताओं ने कभी भी मज़दूरों के अंदर इस महत्वकांक्षा को उजागर नहीँ किया की शिक्षा की  उन सबको कितनी ज़रूरत है।
         अगर शहरी क्षेत्रों का यह हाल है तो मज़दूरों/ काम करने वाली बाईयों के बच्चों को गांवों में कैसी  शिक्षा मिल रही है इसका अनुमान लगाना मुश्किल नहीं। शिक्षा नीतियों में सुधार करते समय इस बात को नज़रअंदाज़ ना करें की क्लोनियों/झुगियों में रहने वाले लोगों को, विशेष कर जो मज़दूरी कर रहे हैं, घरों में काम करने जाते/जाती हैं उनको भी शिक्षित करना कितना आवश्यक है। अगर मज़दूर या घरों में काम करने वाली बाईयां पढ़ लिख जाएंगी तो वह शिक्षा के महत्व को समझ पायेंगी। अपने बच्चों को पार्कों में रुलते छोड़ने की बजाय उनको स्कूलों में भेजेंगी। स्कूलों में जिन बच्चों पर मुफ्त शिक्षा उपलब्ध करवाने के चक्कर में कितने सरकारी धन का दुरुपयोग विद्यार्थियों की अकारण स्कूलों में अनुपस्थिती के कारण हो रहा है उसका उचित उपयोग होगा क्योंकि अब उनके माता पिता को पता चल जाएगा की उनके बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिए उनका स्कूल में जाकर पढ़ना लिखना  कितना आवश्यक है तो वह अपने बच्चों को स्कूलों से अकारण अनुपस्थित नहीं होने देंगे।
पढे लिखे नवयुवक/नवयुवतियां बेरोज़गारी की समस्याओं से जूँझ रहे हैं और ऐसे ही पढे लिखे युवाओं को क्लोनियों में जाकर मज़दूरों/ घरों में काम करने वाली बाईयों को प्राथमिक शिक्षा देने के काम में लगाया जाए तो इससे युवाओं को काम भी मिलेगा ओर क्लोनियों में रह कर काम करने वाले मज़दूर/बाईयां पढ़ लिख पाएंगे और ना तो कोई उनका शोषण अशिक्षित होने की वजह से कर पायेगा ओर ना ही वह अपने बच्चों का ही शोषण होने देंगे। बच्चे स्कूल जाकर पढ़ेंगे, बड़े होकर गलत संगती में पड़ने की बजाए, मेहनत करेंगे और आत्म निर्भर बन सकेंगे। सरकार को अब यह सोचना है की स्कूलों में बच्चे नकल मारने का काम करें जैसा की टी.वी.चैनलों पर दिखाया जा रहा है की परीक्षाओं में नकल करने/करवाने के धंधे ने कितना तूल पकड़ रखा है यां फिर बच्चे रोज़ स्कूलों में जाकर शिक्षा प्राप्त करें, स्कूलों से अनुपस्थित ना हों ओर पढ़ लिख कर अपने पांवों पर खड़ा हो सकें, आत्मनिर्भर बन सकें तो इसके लिए क्लोनियों में मुफ्त बिजली पानी देने की बजाए मज़दूरों/ घरों में काम करने वाली बाईयों को मुफ्त शिक्षा  दिलवाने की व्यवस्था को उपलब्ध कराने की पहल करनी होगी और उसके लिए ऐसी योजनाओं को लाना होगा। जब शिक्षा का प्रसारण हर वर्ग में, क्लोनियों में, गांवों में ओर पिछड़े क्षेत्रों तक हो जाएगा तो मज़दूर खुद की अहमियत को समझ पाएगा, फिर कोई नेता उसका  उल्लु ना बना पाएगा ओर देश विकास के मार्ग पर बढ़ता जाएगा।
-बृज किशोर भाटिया,चंडीगढ़

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