पंचकूला
23 फरवरी 2017
दिव्या आज़ाद
पहले कभी घरों में चह चहाने वाली गौरैया(सपैरो) शायद अब धीरे-धीरे लुप्त हो रही है जिसका कारण कोई और नहीं बल्कि यह है कि अब लोगों के पक्के महलों के कारण यह नन्ही गौरेया अपना घर बना नही पाती। शहरों में तो अब यह गौरैया देखी भी नहीं जाती पर कुछ चुने हुए लोग जिन्हें प्रकृति से लगाव होता है वह इनके संरक्षण के लिए बहुत प्रयास कर रहे हैं उनमें से हैं पंचकूला के मकान न. 452 सेक्टर 11 और स्ष्ठ कॉलेज के होनहार छात्र राजा विक्रांत शर्मा। उनका कहना है कि यदि हम लोग अपने घरों में गौरैया के रहने की व्यवस्था कर देते हैं तो यह चिडयि़ा फिर से घरों में चह चहाने लग पड़ेगी ।
घर से करें शुरूआत
हमें अपने घर से शुरुआत करनी चाहिए है। सबसे पहले गौरैया को रहने लायक ऐसा घर देना है जहां पर वह सुरक्षित महसूस कर सके। नया घर बना रहे हैं तो गौरैया के लिए जगह छोड़ सकते हैं। राजा ने अपने ही घर मे खुद ही आधा दर्जन गौरैया के घर लगा रखे है 7 आज उन घरों में 10 से ज्यादा गौरैया रहती हैं। वह उनके लिए अपने बगीचे में बाजरा और कनकी के टोरे रखे हुए हैं और एक कटोरे में उनके लिए पानी की व्यवस्था भी की गई है। उन्होंने बताया की वह अपने बगीचे में जैविक खेती करते है ताकि गौरैया को प्राकृतिक भोजन की कमी भी नही हो । इसके साथ उन्होंने गिलहरी के लिए भी घर और गिलहरी फीडर बना रखा है। राजा अब हिन्द एजुकेशनल सोसाइटी के साथ मिलकर ट्राइसिटी में गौरैया संरक्षण के लिए जन जागृति अभियान चला रखा है। चिडिय़ों के लकड़ी के घर तैयार करके केवल ना मात्र लागत पर लोगो तक पहुंचाए जाएगें। राजा एसडी कॉलेज चंडीगढ़ बीसीए का टॉपर छात्र है और उसने बीसीए के छात्रों की शिक्षा की सुविधा के लिए बीसीए हब बैबसाईड भी बना रखी है जिसेंम विशेषकर विदेशी छात्र इसका पूरा लाभ ले रहे हैं।
ऐसे करें पहल:- अपने-अपने घरों में घौंसला रखे, कटोरे में पानी, कनकी व बाजारे के दाने रखे। जैविक खेती आदि का प्रयोग करें