जब होता स्वार्थ भाव का अन्त
तब होता है इंसानियत का आरम्भ
इंसान का तो होता है घर घर जन्म
कहीं कहीं दिखाई देती है इंसानियत
कौन कैसा है जानना हमारा काम नहीं
जानें क्या किया क्या कर सकते हैं हम
जाने अनजाने में दिल तो नहीं दुखाया
कर्मों के करते अहम् तो नहीं जगाया
है इंसान में इंसानियत तभी जिन्दा
गर उसने अपनों से रिश्ता निभाया
सिर्फ पैसों से ही न रूप दिखाया
अपनापन और प्यार को सिखाया
मेहनत हो अन्यों को हँसाने के लिए
तड़पते हुए के दर्द दूर करने के लिए
सदाचारी बने अत्यंत शान्ति के लिए
हो श्रवण मनन ध्यान आनंद के लिए
वो सूरज चंदा का निकलना
लदे फलों से वृक्षों का झुकना
नदियों का निरन्तर अबाध बहना
सिखाता है इंसानियत की भावना
प्रकृति ने बहुत कुछ दिया है
ए इंसान मत भूल इंसानियत
अनमोल देन में कर पुण्य कर्म
नर तन मिला है निभा श्रेष्ठ धर्म
वेदादि ग्रन्थों ने इंसानियत का पाठ पढ़ाया
पूर्वजों ने भी मिलजुल कर रहना बतलाया
ऋषियों ने मानव धर्म निभाना सिखाया
रचनाकारों ने स्वरचित काव्य से चेताया
है इंसानियत जीवित इंसान की
हर अभिलाषा पूर्ण हो जाएगी
काम मे लगन,ईमानदारी होगी
जीवन में प्रसन्नता मिल पाएगी।
डाॅ सीमा कंवर
अध्यक्षा संस्कृत विभाग
मेहर चन्द महाजन डी ए वी कालेज फाॅर वूमेन सेक्टर 36-ए चण्डीगढ