चण्डीगढ़
25 अक्टूबर 2024
दिव्या आज़ाद
आम जनमानस मैं वर्तमान वर्ष में दीपावली पर्व मनाने पर भ्रम की स्थिति को देखते हुए श्री देवालय पूजक परिषद्, चण्डीगढ़ द्वारा क्षेत्र के समस्त आचार्यों, विद्वानों, ज्योतिषाचार्यों एवं समस्त मंदिरों के अर्चकों की एक आम सभा बुलाई गई जिसमें डाॅ लाल बहादुर दुबे, आचार्य ओम प्रकाश, आचार्य देवी प्रसाद, आचार्य प्रकाश जोशी, कथा व्यास पं दाताराम, पं सूर्यमणि व आचार्य दुर्गेश बिंजोला आदि ने भाग लिया व प्रमाण सहित 1 नंवम्बर को ही दीपावली पर्व मनाना श्रेष्ठ बताया। सभी ने इस बात पर जोर दिया कि परिषद् के द्वारा प्रत्येक वर्ष नये संवत्सर पर विभिन्न विद्वानों के परामर्श के बाद परिषद् के कैलेंडर का विमोचन किया जाता है जिसमें कि वर्तमान वर्ष में 1 नवम्बर का दिन ही उल्लेखित है परंतु राजकीय अवकाश के कारण भ्रम की स्थिति पैदा हो गयी है।
सभी ने एकमत से कहा कि शास्त्र अनुसार 1 नवंबर का दिन पर्व मनाने हेतु सुनिश्चित किया गया था क्योंकि जहां एक तरफ लक्ष्मी पूजन का विशेष महत्व इसी दिन है, वहीं दूसरी तरफ दरिद्रा का निष्कासन भी लगभग एक मुहूर्त परम्परा अनुसार ही इस दिन किया जाता है और ये दोनों मुहूर्त 1 नवंबर को ही प्राप्त होंगे ना कि 31 अक्टूबर को।
उन्होंने बताया कि चतुर्दश्यादिदिनत्रयेपि दिपावलिसंज्ञके चतुर्दशी, अमावस्या व प्रतिपदा इन तीनों दिन दीप पूजन का विशेष महत्व है। तत्र सूर्योदयं व्याप्यास्तोत्तरं घटिकाधिक रात्रिव्यापिनी दर्शे सति न संदेह। सूर्योदय से और सूर्यास्त के बाद एक घड़ी बाद भी और प्रदोष युक्त अमावस्या और यत्र यत्राह्नि स्वातिनक्षत्रयोगस्तस्य तस्य प्राशस्त्यातिशयःऔर साथ ही स्वाति नक्षत्र भी हो तो यही दीपावली पर्व और दरिद्रा निष्कासन हेतु उत्तम योग व मुहूर्त है जोकि एक नवंबर को है। निर्णय सिंधु के आधार पर भी लिखा है। ऊर्जादौ स्वातिसंयुक्ते तदा दीपावली भवेत। ततः प्रदोष समये दीपान्दद्यान्मनोरमान।
अमावस्या तिथि में ही प्रातःकालीन स्नान मध्यान्ह में पितृ पूजन प्रदोष समय लक्ष्मी पूजा और मध्य रात्रि में दरिद्रा का निष्कासन किया जाता है।
अगम शास्त्रों के अनुसार दीपावली पूजन काली क्रम और श्री क्रम से किया जाता है। श्री क्रम वालों के लिए प्रदोष काल या गोधूलि वेला अमावस्या युक्त और काली क्रम से पूजन में मध्य रात्रि अमावस्या प्रशस्त मानी गयी है। पर दिने एव दिन द्वयेपिवा प्रदोष व्याप्तौ परा यानी दो दिन की अमावस्या में अगले दिन प्रदोष स्वाती नक्षत्र युक्त अमावस्या में दीपावली होती है।
पंचांग स्थानीय सूर्य घड़ी पर आधारित होता है इसलिए शहरों के आधार पर सूर्योदय और सूर्यास्त भिन्न-भिन्न होता है। इस वर्ष उत्तर एवं पश्चिम भारत में दिपावली पर्व में इसी समय की विभिन्नता के कारण 1 नवंबर को अमावस्या है और काशी से पूर्व के प्रांतों में 31 अक्टूबर को।