समाज के लिए मार्गदर्शक साहित्य का निर्माण करना सभी लेखकों का दायित्व है : डॉ. चन्द्र त्रिखा

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चण्डीगढ़

16 फरवरी 2021

दिव्या आज़ाद

हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा आज बसंत पंचमी के उपलक्ष्य में सरस्वती वंदन कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम के प्रारम्भ में चण्डीगढ़ तथा पंचकूला से पधारे लेखकों द्वारा सरस्वती प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं सरस्वती वंदन किया गया। सरस्वती वंदन कार्यक्रम के पहले सत्र में शब्द की महिमा पर विचार-विमर्श करते हुए अकादमी निदेशक, डॉ. चन्द्र त्रिखा ने बताया कि शब्द को ब्रह्म कहा गया है। शब्द सर्वशक्तिमान एवं कालजयी है। उन्होंने कहा कि हम सभी लेखकों का दायित्व बनता है कि हम अपने रचनाक्रम में शब्द के महत्त्व तथा उसकी असीम सम्भावनाओं को ध्यान में रखते हुए समाज के लिए मार्गदर्शक साहित्य का निर्माण करें। शब्द चर्चा में भाग लेते हुए डॉ. विजय कपूर ने कहा कि अच्छे शब्दों की चयन से अच्छी भाषा एवं एक अच्छे समाज का निर्माण होता है। इसी प्रकार जसविन्दर शर्मा, प्रेम विज, संगीता बेनीवाल, संतोष गर्ग एवं नीरू मित्तल ने भी शब्द की महिमा पर अपने विचार प्रकट किए। कार्यक्रम के दूसरे सत्र में कवि गोष्ठी का आयोजन किया गया। कवि गोष्ठी की शुरुआत नीरू मित्तल ने सरस्वती वन्दना से की। वर दो वीणा वादिनी माँ/मेरी लेखनी हरदम निखरित रहे/मेरे शब्दों में आकर सत्य बसे। अकादमी निदेशक डॉ. चन्द्र त्रिखा ने नये रचनाकारों को सम्बोधित करते हुए कहा: लिख औरों की खातिर लिख, भले राग दरबारी लिख/क्यों गोदान न हो पाया धनिया की लाचारी लिख।


संगीता बेनीवाल ने हरियाणवी संस्कृति को चित्रित करते हुए कहा:
ना फूल बिखेरे सरसों के ए पून बाबरी/आया बासन्ती त्यौहार/खैत क्यार अर केसर क्यारी मैं उठै मकरन्द की महकार।


संतोष गर्ग: कैसी आज बसंत की चढ़ी खुमारी देखो/रंग रंगीला हरेक बाग बगीचा है/कुदरत का यह खेल चमत्कारी देखो।


डॉ. विजय कपूर ने आन्तरिक संघर्ष को कुछ इस तरह ब्यान किया: बार-बार लगती है आग/जलता है जंगल बार-बार/घर से कोई भागे तो भागे/भीतर से कैसे निकले आग।
जितेन्द्र परवाज: नज़र का चश्मा उतर गया है चमक उठी हैं हमारी आंखें/निगाह अपनी तो बढ़ गई है जब से देखी तुम्हारी आंखें।


जसविन्दर शर्मा ने आंसू की महिमा को अलग अन्दाज से व्यक्त किया: महज आंख का पानी नहीं हैं आंसू/कितने घातक होते हैं आंसू/आंखों में आते ही अस्थिर कर देते हैं सामने वाले को।


प्रेमविज: पुराने पत्ते झड़ जाने दो/बात पतझड़ों को समझाओं/नई कोंपले आने दो/बात पुराने पत्तों को समझाओ।


कार्यक्रम के अन्त में अकादमी निदेशक, डॉ. चन्द्र त्रिखा ने बसंत पंचमी के उपलक्ष्य में आयोजित सरस्वती वंदन कार्यक्रम में पधारे सभी लेखकों के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया।

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