“जन्माष्टमी”

0
3207
देश में जन्माष्टमी यूं तो हर साल मनाई जाती है,
कृष्ण के जन्मदिन की कथा भी दोहराई जाती है,
मन्दिरों में भीड़ बढ़ चढ़ दर्शन करने को आती है,
देश में मंदिरों की उत्तम सजावट करवाई जाती है।
कृष्ण के भजनों की गूंज हर कोने से आती है,
सुनकर जिसे सभी की सुध बुध खो जाती है,
कहीं पर परवचन कहीं पर रास लीला होती है,
कृष्ण जीवन की झांकियां मन मोह ले जाती हैं।
कुरुक्षेत्र में अर्जुन को जो गीता का ज्ञान दिया था,
कर्म करने का तुमने जगत को जो सन्देश दिया था ,
धर्म/सत्य के मार्ग पर चलने का उपदेश दिया था,
नारी के मान सम्मान की रक्षा करने को कहा था।
दुख होता है आज देख तेरी गीता का निरादर,
दिखावा बड़ गया है दुनिया में देख तूं आकर,
नवयुवक तबाह हो रहे है फंसे नशे में जाकर,
बज़ुर्ग बेबस हो लें शरण वृध्दाश्रमों में जाकर।
लड़वाएँ आज नेता सत्ता के लालच में आकर,
कितने ही ध्रितराष्ट्र बनने लगे मोह  में आकर,
बांट रहे हैं जनता को धर्म, जाती में बांटकर,
बचे खुचे कुचले जा रहे आरक्षण के नाम पर।
भरे दरबार में द्रौपती की आ तुमने लाज बचाई,
शकुनी/दुर्योधन/दुःशाहसन को मिली रुसवाई,
कितनी द्रोपदियों की नहीं होती कहीं भी सुनवाई,
दुर्योधनों के हाथों से आज कितनों ने लाज गंवाई।
जिस दिन हम गीता के सन्देश पर चल पाएंगे,
कर्म पूजेंगे, सत्य ओर धर्म को बल दे पाएंगे,
नारी को दे सम्मान सत्य स्वीकार कर पाएंगे,
निर्मल मन हो जन्माष्टमी उत्सव मना पाएंगे।
बृज किशोर भाटिया,चंडीगढ़

LEAVE A REPLY