चण्डीगढ़
18 जुलाई 2019
दिव्या आज़ाद
मंगलमुखी ट्रांसजेंडर वेलफेयर सोसाइटी, चण्डीगढ़ की डायरेक्टर एवं चण्डीगढ़ ट्रांसजेंडर बोर्ड की सदस्य काजल मंगलमुखी अब राजनीति में भी हाथ आजमाएंगीं। भारतीय जन सम्मान पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रविंदर कुमार सिंह ने उन्हें पार्टी के ट्रांसजेंडर विंग का राष्ट्रीय अध्यक्ष नियुक्त किया है। इस नयी जिम्मेवारी को सँभालने के अवसर काजल मंगलमुखी ने किन्नरों की दशा और स्थिति पर बोलते हुए कहा कि वे इस पार्टी के माध्यम से सभी भारत के किन्नरों के अधिकारों की लड़ाई शुरू करेंगी और संसद में भी अपने किन्नरों की भागीदारी सुनिश्चित करेंगी।
उन्होंने रोष जताते हुए कहा कि भारतीय राजव्यवस्था में महिलाओं, बच्चों, किसानों और युवाओं के लिए आयोग बनाए गए हैं किंतु पुलिस हिंसा के शिकार, यौन शोषण के शिकार किन्नरों के लिए आज तक कोई आयोग नही बनाया गया। इन्हें व्यंग्य के पात्र के रूप में देखा जाता है इस कारण ये लोग इतने खिन्न हो गए हैं कि कभी-कभी समाज की व्यवस्था का क्रोध आम जनता पर निकालने को विवश हो जाते हैं। चिकित्सक इलाज नही करते, विश्वविद्यालय शिक्षा नहीं देते और मानव संसाधन विकास मंत्रालय रोजगार नही देता। संसद में यह कभी जा नही पाएंगे क्योंकि समाज को पुनः इनके अस्तित्व को समझने में सदी लग जाएगी। अतः सिर्फ संविधान ही इसका हल है जो लिंग भेद का विरोध कर समानता स्थापित करने की प्रत्येक नागरिक को गारंटी देता है। उन्होंने संविधान के तहत किन्नरों की सुरक्षा के लिए एक स्थाई आयोग की मांग की जिसका का अध्यक्ष भी किन्नर हो। उन्होंने समान शिक्षा, रोजगार और व्यापार स्थापना करने की, आदतन अपराधी कानून को हटाने की, सभी शासकीय संस्थानों में किन्नरों के रोजगार की व पदों में किन्नरों की संख्या के अनुपात में आरक्षण की भी मांग की है।

उन्होंने कहा कि किन्नरों का अस्तित्व कोई नया नहीं है। यह तभी से हैं जब से मानव शरीर जन्मा है। इस मानव शरीर संरचना को प्रक्रति ने तीन रूप में अवतरित किया स्त्री, पुरूष व किन्नर। किन्नरों का इतिहास भी रोचक और प्रभावशाली रहा है। किन्नर योद्धा रहे, शासक भी रहे व राज दरबार के गुप्तचर भी रहे। किन्तु बडी विडंबना है कि आजादी के बाद किन्नरों के अस्तित्व को नकारा जाने लगा। भारतीय भौतिकतावादी सामाजिक व्यवस्था ने इन्हें देह व्यापार और भिक्षा वृत्ति की ओर धकेल दिया। इन्हें कमजोरी का प्रतीक और अपुरूष के रूप में स्वीकार किया जाने लगा और स्त्री वेषभूषा के आवरण में ढंकने को विवश कर दिया। इतना ही नहीं लिंग भेद के शिकार यह समुदाय परिवार और समाज की मुख्यधारा से कट गया। शिक्षा, रोजगार, व्यवसाय से इन्होंने खुद दूरी बना ली क्योंकि समाज में कभी पूजे जाने वाले ये अर्धनारीश्वर आज हिजडे, छक्का या किन्नर के नाम से पुकारे जाते हैं। पुरूषों के लिए यह नाम एक गाली के लिए रूप में प्रयोग किया जाता है। आजादी के 73 वर्ष बाद आज तक की सरकारों के पास इनके लिए कोई ठोस नीति नहीं है। पितृ सत्ता समाज के शिकार इन मानवों ने अपनी सभ्यता और रीति रिवाज बना लिए। परिवार और समाज से बेदखल इस पूरी सभ्यता की जनसंख्या का आंकड़ा भी सरकार के पास नही है। परिवार, समाज, शासन, प्रशासन और सरकारों द्वारा उपेक्षित इस समाज में अब आत्महत्याएं भी अधिक होने लगी है। शासकीय संस्थानों में इनके अनुकूल वातावरण का निर्माण करने में सरकार अभी तक असफल रही है। उन्होंने कहा कि राजनीति में उतर कर वे संवैधानिक रूप से अपने समुदाय के लोगों के हक़ की लड़ाई लड़ेंगीं।

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