“माँ की कुर्बानी”

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इंतज़ार थी माँ को बेटे की घर लौट आने की
बेटे की चाहत थी सीमा पर फर्ज निभाने की
               जिस के होने से कभी घर महकता था
               उसकी बातो से हर कोई चहकता था
               बेटे की फोटो है, उसकी निशानी की
मौत का दामन थाम लिया हंसके जिसने
दुश्मन की गोलियां सीने पर झेलीं जिसने
ठानी जिसने वतन पर मर मिट जाने की
                तिरंगे में लिपटने की तमन्ना दिल में सजा के
                भारत माँ के वीर सपूत भिडें दुश्मन से जाके
                देश याद रखेगा सैनिक के शहादत पाने की
माताओं के जिगर के टुकडे सीमा पे हैं जाते
देश की खातिर  खुद को न्योछावर कर जाते
कीमत चुका ना सके कोई माँ की कुर्बानी की
बृज किशोर भाटिया,चंडीगढ़ 

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