आज हम बात करने जा रहे हैं एक ऐसे टॉपिक पर जिससे सब वाकिफ हैं लेकिन इसके बारे में कोई बात नहीं करना चाहता। यह टॉपिक शायद पत्रकारों के लिए बहुत छोटा हो सकता है लेकिन इसका गलत असर बाहरी दुनिया के लोगों पर काफी ज़्यादा पड़ता है।

चलिए विस्तार से जानते हैं कि हम किस तरफ इशारा कर रहे हैं। आज बात हो रही है पक्षपात की। अपनी खबरों में पक्षपात करना। बहुत से पत्रकार पक्षपाती होकर रिपोर्टिंग करते या खबरें लिखते हैं। यहाँ हम नए व पुराने सभी पत्रकारों की बात कर रहे हैं। इसके साथ ही आजकल एक नया ट्रेंड भी आ गया है कि यदि हमें या हमारे किसी खास को कोई व्यक्ति पसंद नहीं है तो हम उसकी न्यूज़ न लगाएंगे न ही लगने देंगे

इस सब की उम्मीद उन लोगों से की जा सकती थी जो शायद पत्रकारिता में नए हों लेकिन ऐसा उन पत्रकारों को भी करते हुए देखा जा रहा है जो बहुत वर्षों से पत्रकारिता कर रहे हैं और बहुत वरिष्ठ पद पर हैं।

कम से कम वरिष्ठ पत्रकारों को तो पत्रकारिता के सिद्धांतों के बारे में जानकारी होनी चाहिए कि यह एक ऐसा प्रोफेशन है जिसमें लोग हमारी लेखनी पर भरोसा करते हैं। लोग बहुत उम्मीद से पत्रकारों के पास आते हैं कि किसी तकलीफ में या किसी न किसी रूप से आगे बढ़ने में पत्रकार उनका साथ देंगे। लेकिन बहुत से पत्रकार किसी का काम करने के लिए बदले में या तो सीधा पैसे डिमांड करते हैं या फ़िर ऐसे मौके पर अपनी कोई पुरानी खुंदक निकालने लग जाते हैं। ख़बर की आस में व्यक्ति इनके चक्कर काटता रहता है और उसको केवल मिलते हैं लारे।

हाल ही में कुछ दिनों पहले एक प्रतिष्ठित अखबार के एक वरिष्ठ पत्रकार को किसी ने एक ख़बर लगाने के लिए संपर्क किया। वह व्यक्ति पत्रकार को बहुत पहले से अच्छे से जनता था लेकिन काफी समय से संपर्क में नहीं था। पत्रकार ने उसे ख़बर लगाने का वादा करके उसकी उम्मीद बढ़ा दी। लेकिन जब अगले दिन ख़बर नहीं लगी तो व्यक्ति ने पत्रकार को फिर से संपर्क किया। पत्रकार ने कोई बहाना बनाकर बोला कि ख़बर कल लगेगी।

अब आप समझ ही गए होंगे न कि ख़बर नहीं लगी? जी हां! वह ऐसी ख़बर थी जो आसानी से लग सकती थी। लेकिन जब अंदर की बात पता चली तो सामने आया कि पत्रकार के किसी जानकार को वह व्यक्ति एक आंख नहीं भाता है। यही कारण है कि पत्रकार ने उस व्यक्ति की ख़बर नहीं लगने दी और उसे 4-5 दिनों तक उल्लू बनाया। आखिरकार वह व्यक्ति हताश हो गया और उसने खुद ही संपर्क करना बंद कर दिया।

अब बहुत से लोगों के लिए यह कोई बड़ी बात नहीं होगी। लेकिन जो व्यक्ति हताश हुआ और जिसका पत्रकारों से भरोसा उठा… उसके लिए यह बहुत बड़ी बात थी। हमें पत्रकार बनते हुए सिखाया जाता है कि हमारा काम है रिपोर्टिंग करना और ख़बर लिखना। उस ख़बर में न तो हम पक्षपात कर सकते हैं और न ही कोई पर्सनल मोटिव लेकर आ सकते हैं। यह एक प्रोफेशन है जिसमें व्यक्तिगत उद्देश्य लाना उसके सिद्धांतों का उल्लंघन है।

यदि वरिष्ठ पत्रकार ही ऐसी हरकतें करेंगे तो युवा पत्रकारों को क्या सीख मिलेगी। वरिष्ठ पद पर कार्यरत लोग हमेशा ही युवाओं के लिए एक आदर्श होते हैं। उन्हें बहुत सोच-समझकर काम करना चाहिए कि इसका बाकी के लोगों पर क्या असर पड़ेगा।

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