चंडीगढ़ में दो पूर्व सांसद इस बार चुनाव मैदान में थे। लेकिन मोदी की सुनामी के कारण दोनों पूर्व सांसदों की दुकान हमेशा-हमेशा के लिए बंद हो गई है।

शहर की राजनीति का चेहरा अब पूरी तरह से बदलने वाला है। लेकिन इसे सिर्फ मोदी की सुनामी के कारण होने वाली स्थिति के साथ ही दोनों पूर्व सांसदों की अपनी कमियां भी कहा जा सकता है।

जीतने वाली कैंडिडेट की ओर से चुनाव प्रचार के लिए हर संभव प्रयास किया गया था। उनकी अपनी एक टीम थी, मीडिया के लिए अलग टीम थी, पार्टी कार्यकर्ता जरूरत से ज़्यादा सक्रिय थे। वहीं दूसरी ओर हारने वाले दोनों पूर्व सांसद जहां जनसभाओं, रैली आदि में जुटे थे, उनका मीडिया कनेक्शन उतना ही वीक नज़र आया।

दोनों में से एक पूर्व सांसद ने शहर का सबसे बड़ा पीआर तक नियुक्त किया था लेकिन उसके बाद भी उनको वह पहुंच नहीं मिल पाई जितनी मिलनी चाहिए थी। साथ ही दोनों के कार्यकर्ताओं की ओर से भी सोशल मीडिया व मीडिया हाउसेस में उतनी मजबूत पकड़ नहीं बनाई जा सकी जितनी जीतने वाली उम्मीदवार की टीम की ओर से थी।

अब बात करते हैं बदलने वाली राजनीति के कारणों की। एक पूर्व एमपी इतने बुजुर्ग हो चुके हैं कि वे दुबारा से चुनाव लड़ने की सोच भी नहीं सकते हैं। हालांकि दोनों पूर्व सांसद में से एक अपने परिवार में से किसी को स्थापित करने की कोशिश करेंगे लेकिन दूसरे पूर्व सांसद तो अब इस लायक भी नहीं रहे।

दोनों पूर्व सांसदों के परिवार पूर्ण रूप से उनके चुनाव प्रचार में जुटे हुए थे और हर संभव समर्थन कर रहे थे। लेकिन 5 साल बाद होने वाले चुनाव में यदि वे अपने परिवार में से किसी को एक बड़े पद पर नियुक्त करते हैं या चुनाव लड़ने के लिए खड़ा करते हैं, तो उनके परिवार-वाद की चपेट में आने के पूरे आसार हैं। सबसे पहले उनकी अपनी ही पार्टी में विरोध हो जाएगा।

इसको देखते हुए अब उनकी ओर से लगाए जाने वाले प्रयास असफल भी हो सकते हैं। शहर की राजनीति अब एक दम पूरी तरह से बदल गई है। अब 5 साल बाद हमें नए चेहरे व नई रणनीतियां देखने को मिलेंगी।

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