चंडीगढ़
27 फरवरी 2019
दिव्या आज़ाद
योगी, साधक और आर्य हमेशा देशभक्त होता है। जो सोचता है वही बोलता है। राष्ट्र उसका प्रथम देव है। राष्ट्र की आराधना वही कर सकता है जो धार्मिक, सामाजिक और आर्थिक कर्मकांड कर सकता है। राष्ट्र सर्वोपरि है। राष्ट्र की सीमा सुरक्षित होना जरूरी है। जिस व्यक्ति में निर्णय लेने की क्षमता होती है वही नेतृत्व कर सकता है। उपरोक्त शब्द केंद्रीय सभा द्वारा आयोजित महर्षि दयानंद सरस्वती जी के 195 वें जन्मोत्सव के दौरान वैदिक जगत के विद्वान स्वामी विदेह योगी ने आर्य समाज सेक्टर 7 बी चंडीगढ़ में कहे। उन्होंने कहा कि आंतरिक चक्षु अर्थात तीसरे नेत्र से ही लाभ हानि का चिंतन करके निर्णय लिया जाता है। ब्रह्मांड को जानने के लिए शरीर को जानना अति आवश्यक है। प्रजापति ही प्राण है। उसके बिना इंद्रियों की कोई महत्व नहीं है। मनन का संबंध मंत्र से है। परमात्मा मन और मंत्र दोनों ही होता है। मनुष्य मननशील है। आत्मा दिल में ही निवास करती है। अंतःकरण सशक्त होने से व्यक्ति बाहरी रूप में समर्थ हो सकता है। इसके लिए यम, नियम का पालन कर जीवन का विकास करना चाहिए। कार्यक्रम से पूर्व भजन उपदेशक भूपेंद्र आर्य ने पंडित भूपेंद्र आर्य ने मनमोहक भजन प्रस्तुत किए।