संयुक्त परिवार थे ओर सभको आराम था,
एक दूसरे के सुख दुःख का एहसास था।
रिश्ते के मूल्यों का सभको पता रहता था,
हर कोई एक दूसरे के दिल में रहता था।
वक्त के बदलाव से परिवार छोटे हो गए,
दिखावा बढ़ता गया, दिल छोटे हो गए।
जैसे जैसे परिवार आपस में बंटते गए,
किसानों के खेत टुकड़ों में बंटते गए।
ज़मीं बहुत कम ढंग से खेती ना हो पाए,
आमदन है कम घर का खर्चा ना हो पाए।
फसलें बड़ें ना बड़ें इनके बच्चे बढ़ते जाएं,
बैंक से कर्ज़ा लेते हैं पर वापिस कर ना पाएं।
कर्ज़ा माफी के लिए नेता चक्कर खूब लगवाएं,
नेताओं के चुनावी वादों को समझ ना ये पाएं।
किसानों को अगर कम खर्च में है घर चलाना,
संयुक्त खेती के रास्ते को पड़ेगा उन्हें अपनाना।
किसानों को अपने बच्चों को नई शिक्षा देनी होगी,
संयुक्त परिवारों की खूबियाँ अब समझनी होंगी।
शिक्षा के प्रसार से किसान सब कुछ जान जाएंगे,
अपने भरोसे से बढ़ेंगे, नेता शोषण ना कर पाएंगे।
बृज किशोर भाटिया, चंडीगढ़