हम निकले थे जिनके भरोसे,
वह खुद ही सहारा ढूंढते हैं।
दरिया वो क्या पार करवाएंगे,
जो खुद ही किनारा ढूंढते हैं।
           जीवन में सबके दुख के दिन भी आते हैं,
           दुखों से लड़ने की हिम्मत हमें दे जाते हैं।
           सुख मिले तब हम कदर कहां कर पाते हैं,
           दुख मिले तो सुख की कीमत जान पाते हैं।
दरिया के पानी से तब तक ही डर लगता है,
बिना कूदे दरिया में, तैर के कोई निकलता है।
मुश्किलों से घबराकर रास्ता नही मिलता है,
सामना करो डट कर तभी हल निकलता है।
                किसी के भरोसे पर कब तक चलोगे,
                काम चोर बन कर भी कब तक रहोगे।
                मानुष जन्म लेकर भी व्यर्थ गंवाओगे,
                कर्म करने आए बिना कर्म ही जाओगे।
छोड़ दो भरोसा मुफ्त बिजली पानी का,
इंकार कर दो कोई भी आरक्षण पाने का।
मेहनत करो आगे बढ़ो, न सर झुकाने का,
जात,धर्म से उठो, सभी समानता लाने का।
                जब देशवासी आपस में  लड़ते जाएंगे,
                नेताओं के ग्रास सभी बनते ही जायेंगे।
                गरीबों/ दलितों का कैसा सुधार करेंगे।
                वादे इनसे करें,तिजोरियां अपनी भरेंगे।
रख खुद पे भरोसा, हम अपने काम करे,
न किसी के भरोसे पर, न लालच में पड़ें।
ना अफवाहों पर करें यकीन, ना ही डरें,
उसी का लें नाम, सत्य के मार्ग पर चलें।
बृज किशोर भाटिया, चंडीगढ़

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