अक्सर बहक जाते हैं लोग पीकर शराब,
कर बैठते हैं अपनी ही तबियत खराब।
शादी व पार्टियों में कितनों को देखा है
उल्टियां करते हुए, जब पीते हैं शराब।
कौन कहता है सिर्फ पैसे वाले ही पीते हैं,
मज़दूर भी देखे हैं ठेकों पर पीते शराब।
कितने भिखारी जो भीख से कमाते हैं,
भीख के पैसों से रातों में पीते हैं शराब।
कई खुशियां मनाते हैं पी कर शराब,
कई गम मिटाने के लिये पीते शराब।
कितने घरों की बर्बादी बनी है शराब,
पीने वालों को भी पी गयी यह शराब।
धर्मों में प्रचार तो होता है की ना पीएं शराब,
हिन्दू, मुस्लिम, सिख,ईसाई पी जाएं शराब।
शराबियों को पकड़ने ओर सज़ा सुनाने वाले,
खुद परहेज़ नहीं करते ओर पी लेते हैं शराब।
नशा मुक्ति का झांसा चुनावों में देने वाले,
शराब बंदी के नाम पर वोटों को लेने वाले।
बीतते चुनाव ठेके शराब के खुलवाने वाले,
आमदन बढ़ाएं पर ना बन्द कर पाएं शराब।
पयकड़ों से तंग हो कर सवाल ये पूछे शराब,
गिरो तुम नालों में, बदनाम हो जाती है शराब।
बे हिसाब पी के क्यों करते हो लीवर खराब,
सलीका नहीं पीने का तो छोड़ो पीना शराब।
-बृज किशोर भाटिया, चंडीगढ़