बचपन की वोह शरारतें याद हैं अब तक हमें,
खाई कितनी मार भूली नहीं अब तक हमें।
सब की हंसी निकलना याद है अब तक हमें,
अध्यापक का फटकारना शोर के कारण हमें ।
स्कूल की पढ़ाई के बाद सभी साथी बिछड़ गये,
कुछ कालेज में, कुछ काम ढूंढने/करने लग गये।
घर चलाने के वास्ते हम सभी एक सो दो हो गए,
शादी होने के बाद सब अपने परिवारों में खो गए,
कभी कभार हम एक दूसरे से मिल पाते थे,
बच्पन की बातें कर, हम खुशियां मनाते थे।
घर की ज़िमेंवारियों से हम सभी घिर चुके थे।
बच्चों को सेट करते करते सभी थक चुके थे।
70 की उम्र तक पहुंचते बीमार सब होने लगे,
कुछ खुश तो कुछ जीवन से निराश होने लगे।
उम्र के बढ़ते बढ़ते सभी बूढ़े नज़र आने लगे,
बच्पन के साथी अब एक एक कर जाने लगे।
हम सब को चाहिए नकारत्मकता ना अपनाएं,
रहें सकरात्मक , खुशहाली से जीवन जी पाएं।
जीना है तो खुल कर जीएं बिल्कुल ना घबराएं,
विदा भी जब हों दुनियां से तो हंसते हंसते जाएँ।
बृज किशोर भाटिया, चंडीगढ़