स्कूलों से विद्यार्थियों का अकारण अनुपस्थित होना आज की सबसे बढ़ी समस्या है। इससे पहले की यह स्कूल के विद्यार्थियों में एक बीमारी की तरह फैल जाए इसकी रोक थाम ज़रूरी है । सरकार द्वारा किये गये प्रयासों को तब ही सफलता मिलेगी जब सभी विद्यार्थी शिक्षा का लाभ प्राप्त कर सकें वरना शिक्षा क्षेत्र के विकास में सरकार द्वारा किये गये सबि यत्न विफल साबित होंगे और तमाम प्रयास साक्षरता क्षेत्र में वित्तीय सहायता देने के बाद भी शिक्षा उपलब्ध करवाने में असफल नज़र आएंगे।
किसी भी देश के विकसित होने का अनुमान उस देश की पढ़ी-लिखि जनता पर ही निर्भर करता है। अगर लोग शिक्षित होंगे तो कोई भी देश सफलता के मार्ग को छू सकता है और विकसित बन सकता है। पर जिस देश की जनता अनपढ़ होगी विकास्ता वहाँ से कोसों दूर होगी। देखने में ये बात आम लगती है कि बच्चे स्कूलो से बिना बताए गैर हाज़िर हो रहे हैं पर अगर इस बात को नज़रअंदाज़ करते रहे तो ये बच्चों के जीवन से खिलवाड़ करने के इलावा और कुछ नहीं होगा।
हर मां बाप का एक सपना होता है कि उनका अपना बच्चा पढ़-लिख कर अपना, अपने परिवार का और अपने देश का नाम रोशन करे। लेकिन सपनों को साकार करने में तपस्या का मार्ग अपनाना पढ़ता है, अपने बच्चों की गतिविधियों पर नज़र रखनी पड़ती है। केवल इस बात से संतुष्ठ हो जाना कि आप के बच्चे घर से समय पर स्कूल जाते है और समय पर स्कूल से घर वापिस आ जाते है से काम नही बनता, आवश्यकता है तो ये जानने की कि आप का बच्चा स्कूल जा भी रहा है या नहीं और अगर वो स्कूल नहीं जा रहा तो स्कूल के समय वो कहां रहता है? ठीक दूसरी तरफ स्कूल के अधयापकों को भी ये देखने की ज़रूरत है कि उनकी कक्षा का कौन सा बच्चा बिना बताये कक्षा से गैर हाज़िर है ताकि उस बच्चे की सूचना उसके मां बाप को बिना विलम्ब करे दी जा सके। लेकिन मां बाप और अध्यापकों के आपसी तालमेल के अभाव के कारण बच्चों के भविष्य में अंधकार छा रहा है।
स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों में इतनी समझ नहीं होती कि वो अपना भला बुरा समझ सकें, वो तो एक कच्चे घड़े की मट्टी के सामान होते हैं और उनको जिस सांच्चे में डालेंगे वो वैसे ही बनेंगे। इस बात में कोई भी संदेह नहीं कि मां बाप व अध्यापक दोनों बच्चों का अच्छा ही सोचते है लेकिन कभी-कभी बच्चों के प्रति छोटी सी लापरवाही भी बच्चों के उज्वल भविष्य को अंधकारमय बना देती है । ऐसी स्थिती से निपटने के लिए ज़रूत है माता-पिता और अध्यापकों के आपसी ताल मेल की और बच्चों के प्रति सतर्कता अपनाने की ताकि वो पार्कों,सड़कों और बाज़ारों में टहलते नज़र आने की बजाये स्कूलों मे और अपनी कक्षाओं में पढ़ते नज़र आएं । ज़रूरत है तो बस अपनी-अपनी जिम्मेदारी समझने की और उसे निष्ठापूर्वक निभाने की।
ब्रिज किशोर भाटिया
Chandigarh