वक्त का पईया चलता रह्ता,
इक पल यह रुके कहीं नहीं,
कोई सोचे की इसे पकड़ लूं,
पकड़ में आए किसिके नहीं।
मैने यह कर दिया मैने वो किया,
ढींगैं मारे चाहे कितना भी कोई,
उस की मर्ज़ी बिना पत्ता ना हिले,
अहंकार किस बात का करे कोई।
बचपन के दिन ना लौट के आएं,
यौवन के दिन मस्ती में कट जाएं,
बुढ़ापे के दिन कितनों को सताएं
लाचारी मे जब किसिके दर जाएं।
दुख और सुख सब वक्त ही लाए ,
जो आज रंक कल राजा बन जाए,
हर स्थिति मे जो समान रह पाए ,
वक्त की कदर करे, टूट ना पाए।
–बृज किशोर भाटिया,बैंगलोर