नारी सशक्तिकरण देश को सशक्त करने हेतु आवश्यक

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नारी खुद अपना निर्णय लेने के लायक हो, तथा पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चले, उसकी खुद की तथा समाज की सोच बदलें, यही नारी सशक्तिकरण है।

परंतु क्या वास्तव में ऐसा हो रहा है?

भारत एक पुरुष प्रधान देश है। महिलाओं की स्थिति बहुत ही खराब है। अभी भी वह छोटे-छोटे निर्णय लेने के लिए आत्मनिर्भर नहीं है। लोगों की सोच महिलाओं को केवल घर संभालने पर ही मजबूर करती है। यदि यह सोच बदल दी जाए तो आज हमारा देश विकासशील से विकसित देशों की गिनती में आ जाएगा।

परंतु पुरानी रूढ़िवादी सोच एवं परंपराओं के चलते यदि कोई महिला बाहर निकलकर कुछ करना भी चाहे तो पहले उसे अपने घर के सदस्यों से तथा उनकी सोच से लड़ना पड़ता है। फिर समाज में फैली लैंगिक असमानता से और एक लड़ाई खुद अपने आप से भी लड़नी पड़ती है। उस सोच से जो केवल घर के कामकाज में उसके आत्मसम्मान को दीमक लगा गई। अपने निर्णय के लिए हमेशा दूसरों पर निर्भर हो जाना, कहीं ना कहीं नारी खुद भी भूल जाती है कि उसके पास भी वैसा ही दिमाग है जो अपने निर्णय स्वयं ले सकता है।

नारी में आत्म विश्वास जगाना तथा स्वाबलंबी बनाना ताकि नारी खुद को इन बंधनों से मुक्त करके इतनी सक्षम हो और आत्मनिर्भर बन सके तथा स्वतंत्रता पूर्वक अपने फैसले ले सके।

इसके लिए जरूरी है परिवार तथा हमारा समाज पुरानी सोच एवं रीतियों को बदलें ताकि नारी सशक्त हो सके। यदि एक नारी सशक्त होगी तभी पूरा देश सशक्त होगा।

समाजसेविका एवं लेखिका: मंजू मल्होत्रा फूल

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